ज़िंदंगी के रंग बेशुमार
रचनासिंह ’रश्मि’जिंदगी
ख़ूबसूरत-सा साज़ है।
न जाने कितने
सुर-ताल हैं!
कभी खनकती,
कभी सुबकती-सी
आवाज़ है।
कभी
रस्मों-रिवाजों में लिपटी
मासूम-सी
कभी,
वर्जनाओं को तोड़ती
नदिया का तूफ़ान है।
कभी रिमझिम सावन,
कभी मरुस्थल की प्यास है
कभी मोम-सी पिघलती
कभी सागर का तूफ़ान है।
कभी फूल-सी नाज़ुक,
कभी पत्थर की चट्टान है।
कभी कोयल की मीठी बोली,
कभी सिंह-सी दहाड़।
कभी ग़मों का दरिया है,
कभी ख़ुशियों का सैलाब।
अनगिनत से सवाल-जवाब हैं,
जीवन-साज़ के
अलग-अलग किरदार हैं।
फिर भी तुझसे
बेइंतहा प्यार,
ज़िंदगी,
तेरे रंग बेशुमार हैं।