ज़िंदंगी के रंग बेशुमार

01-03-2019

ज़िंदंगी के रंग बेशुमार

रचनासिंह ’रश्मि’

जिंदगी 
ख़ूबसूरत-सा साज़ है। 
न जाने कितने
सुर-ताल हैं! 
कभी खनकती, 
कभी सुबकती-सी 
आवाज़ है। 
कभी
रस्मों-रिवाजों में लिपटी
मासूम-सी 
कभी,
वर्जनाओं को तोड़ती
नदिया का तूफ़ान है। 
कभी रिमझिम सावन, 
कभी मरुस्थल की प्यास है
कभी मोम-सी पिघलती 
कभी सागर का तूफ़ान है। 
कभी फूल-सी नाज़ुक,
कभी पत्थर की चट्टान है। 
कभी कोयल की मीठी बोली, 
कभी सिंह-सी दहाड़। 
कभी ग़मों का दरिया है, 
कभी ख़ुशियों का सैलाब। 
अनगिनत से सवाल-जवाब हैं, 
जीवन-साज़ के 
अलग-अलग किरदार हैं। 
फिर भी तुझसे
बेइंतहा प्यार, 
ज़िंदगी,
तेरे रंग बेशुमार हैं।

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