ज़िन्दगी को मज़ाक में लेकर

03-05-2012

ज़िन्दगी को मज़ाक में लेकर

तेजेन्द्र शर्मा

कुछ जो पी कर शराब लिखते हैं,
बहक कर बेहिसाब लिखते हैं,
जैसा जैसा ख़मीर उठता है,
अच्छा लिखते हैं, ख़राब लिखते हैं।

रुख़ से परदा उठा के दर परदा,
हुस्न को बेनकाब लिखते हैं,
होश लिखने का गो नहीं होता,
फिर भी मेरे जनाब लिखते हैं।

साक़ी पैमाना साग़रो मीना,
सारे दे कर ख़िताब लिखते हैं,
अपने महबूब के तस्सवुर को,
ख़ूब हुस्नो शबाब लिखते हैं।

लिखने वालों की बात क्या कहिए,
जब ये बन कर नवाब लिखते हैं,
यार लिख डालें ज़हर को अमृत,
आग को आफ़ताब लिखते हैं।

जो भी मसला नज़र में हो इनकी,
ये उसी का जवाब लिखते हैं,
ज़िन्दगी को मज़ाक में लेकर,
ज़िन्दगी की किताब लिखते हैं।

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