ज़रूरत है

15-04-2020

ज़रूरत है

निर्मल सिद्धू (अंक: 154, अप्रैल द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

आवाज़ को सुरों की ज़रूरत है
दिलों को चाहतों की ज़रूरत है
छोड़ देना तन्हा किसी को बड़ी बात नहीं
साथ देने के लिये पर हौसलों की ज़रूरत है


अँधेरे भी सदा क़ायम तो रह नहीं सकते
डूबते सूरज को नई किरणों की ज़रूरत है
ज़माना तो कभी रहम-दिल हो नहीं सकता
हर उम्र को इसलिये नये सपनों की ज़रूरत है,


हालात गर बदलने हैं, वक़्त गर बदलना है
फिर यहाँ कुछ सरफिरे दीवानों की ज़रूरत है
दूर कर दे ग़म के साये, गुलज़ार हो चमन सबका
इन फ़िज़ाओं को फ़कत उन बहारों की ज़रूरत है।

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