ज़माना ख़राब है
अब्दुल हमीद ‘अदम‘ऐ यार-ए-ख़ुश ख़राम ज़माना ख़राब है
हर कुन्ज में है दाम ज़माना ख़राब है
दाम=जाल
मलबूस ज़द में है हवास की जवान परी
क्या शेख़ क्या इमाम ज़माना ख़राब है
मलबूस ज़द=हानि की चपेट
उड़ती हैं सूफ़ियों के लिबादों में बोतलें
अरबाब-ए-इन्तज़ाम ज़माना ख़राब है
अरबाब=मित्र
सैर-ए-चमन को गेसू-ए-मुश्कीं बिख़ेर कर
जाओ न वक्त-ए-शाम ज़माना ख़राब है
कह तो रहा हूँ उनसे बड़ी देर से ‘अदम‘
कर लो यहीं क़याम ज़माना ख़राब है
क़याम=रहना, बसना
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