ज़माना ख़राब है

28-05-2007

ज़माना ख़राब है

अब्दुल हमीद ‘अदम‘

ऐ यार-ए-ख़ुश ख़राम ज़माना ख़राब है
हर कुन्ज में है दाम ज़माना ख़राब है

 

दाम=जाल

 

मलबूस ज़द में है हवास की जवान परी
क्या शेख़ क्या इमाम ज़माना ख़राब है

 

मलबूस ज़द=हानि की चपेट

 

उड़ती हैं सूफ़ियों के लिबादों में बोतलें
अरबाब-ए-इन्तज़ाम ज़माना ख़राब है

 

अरबाब=मित्र

 

सैर-ए-चमन को गेसू-ए-मुश्कीं बिख़ेर कर
जाओ न वक्त-ए-शाम ज़माना ख़राब है

 

कह तो रहा हूँ उनसे बड़ी देर से ‘अदम‘
कर लो यहीं क़याम ज़माना ख़राब है

 

क़याम=रहना, बसना

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