ज़माना
लवनीत मिश्रज़माना पूछता है,
की तेरी तनहाई का,
कारण है क्या,
कैसे कहूँ कि तनहा में नहीं,
बेबस हूँ तेरे बनाये,
नियमों के आगे॥
फिर भी ख़ौफ़ नहीं मुझको,
तेरे इन फ़िजूल नियमों से,
कि ज़िन्दगी मेरी है,
और जीना मुझको है,
अपने और अपनों के लिए॥
ख़ैर छोडो कि,
तुम्हें समझाऊँ क्या,
कि तू समझ कर भी,
कहता है नासमझ मुझे॥
दुख इस बात का नहीं,
कि मुझे डर है तुझसे,
या तेरे बनाये नियमों से,
दुख इस बात का है,
कि एक मेरे कारण,
तूने मेरे अपनों को,
जीने ना दिया।
1 टिप्पणियाँ
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tanhai ke swaal......... jo kuch aise he hote hai..... sunder