ये रंग ज़िंदगी के हैं

15-04-2021

ये रंग ज़िंदगी के हैं

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 179, अप्रैल द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

कुछ रंग लाचार कर गए,
सिसक सिसक के चुप हुए;
आर्तनाद कर मन में,
सृजन की ओट में छुप गए।
 
कुछ रंग स्वयं हमने रचे,
जो रंग दिखा गए;
वो रंग उत्सव में सजकर,
जीना सीखा गए।
 
ये रंग जिंदगी के हैं . . .
 
छुपाना भी होता है,
दिखाना भी होता है;
बदरंग हो जाये, तो रचकर स्वयं,
सजाना भी होता है।
 
तुम इतना विचार रखना,
सिसकते रंग छुपाना;
सृजन के रंग चढ़ाना,
हर दिन होली मनाना।

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