ये कौन सी उमस है
सन्तोष कुमार प्रसादये पंखे सर के ऊपर नाचते हैं
एक लय के साथ, तन्मय होकर
ठंडी हवा फैलाते हुए
ये क्या कुछ कहना चाहते हैं?
नीरव शान्ति के बीच उसकी आवाज़
मानो कल-कल करती है
गंगा की धारा के समान
एक बटन और उसका लगातार घूमना
बिना किसी सोच के
जैसे एक सपेरा बजा रहा हो बीन
और मदहोश होकर नाच रहा साँप
पंखा तो गर्मी से नजात दिला रहा है
पर ये कौन सी उमस है
जो घर कर गयी है मन में,
वातावरण में
कुछ ऐसा है जिसने,
इस सूक्ष्म शरीर में
मचा रखी है उथल पुथल
ये कहाँ की गर्मी है
की नस फटने को व्याकुल है
कूलर चलाओ तब ये गर्मी भागेगी
पर उन जगहों का क्या
जहाँ कूलर भी प्रणाम कर दे
पसीने से लथपथ भाग रहे लोग
एक दूसरे को पीछे छोड़ते हुए
बादलों ने जमा रखा है डेरा
एक जगह पे...........
सब त्राहिमान पुकार रहे
और बादल जैसे कह रहा हो
पंखा चलाओ, पंखा बन जाओ