यमुना का किनारा

01-05-2021

यमुना का किनारा

अवनीश कुमार (अंक: 180, मई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

सूरज डूबने जा रहा था। चारों तरफ़ उसकी लालिमा  बिखरी हुई थी। सामने नैनी का पुराना पुल दिखाई दे रहा था, जिस पर नीचे सड़क और ऊपरी तल में रेल की पटरी बिछी हुई थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे वो लाल-लाल सूरज पुल के बस उस पार ही हो। मैं नये नैनी पुल पर खड़ा उस रमणीय दृश्य को निहार रहा था। पुल बसों और बड़े-बड़े वाहनों के आने से अचानक थरथरा उठता था। ठंडी हवा मेरे माथे को छू रही थी। सूरज की लाली आसमान के साथ-साथ अपनी पुत्री यानि तरणितनूजा (यमुना) की धाराओं में बिखरी हुई थी। प्रतीत हो रहा था कि मानो पिता अपनी चंचल बिटिया पर लाड़ उड़ेल रहा हो।

 नैनी पुल को रोककर रखे हुए मोटे-मोटे तारों को देखकर मकड़ी के जाले की याद आती थी। कोई एक किलोमीटर से भी लम्बा पुल यमुना पर बना दिया गया था, जिसे नया नैनी पुल कहा जाता है। इसे 2004 में इस उद्देश्य से बनवाया गया था ताकि पुराने पुल पर दबाव को कम किया जा सके।

यमुना, जो कन्हैया के मथुरा से होती हुई आती थी, मुझे बहुत लुभा रही थी। छोटी-छोटी नावें उसमें तैर रहीं थीं और कुछ साइबेरियन पंछी भी दिख रहे थे। उनकी संख्या उतनी तो नहीं थी जितनी त्रिवेणी संगम पर दिख जाती है। मैं ये सारा दृश्य नैनी पुल पर खड़ा होकर देख रहा था।

अब सूरज पुराने नैनी पुल के नीचे हो चला था और उसके किनारों पर लगे जालीदार बैरियर्स से झाँक रहा था। मैंने अब नीचे जाने का मन बनाया और सीढ़ियाँ उतरते हुए नीचे आ गया। अब मैं यमुना के बिल्कुल किनारे नैनी के दोनों पुलों के बीच खड़ा था। पानी में कुछ छोटी-छोटी मछलियाँ कूद रहीं थीं। थोड़ी दूरी पर ही छोटे-छोटे बच्चे पंछियों को दाना डाल रहे थे जिसे खाने के चाव में पानी मे छलाँग लगाती मछलियाँ बहुत सुंदर लग रहीं थीं।

शहर की इक्का-दुक्का लाइटें अब जलने लगी थीं, लेकिन नैनी पुल की बत्तियाँ अभी बुझी हुई ही थीं। यमुना में अब नाव भी एक-दो ही तैरती दिख रहीं थीं। मैं यमुना के दूसरे किनारे की तरफ़ देख रहा था। मेरा मन अचानक उस तरफ़ जाने को मचलने लगा। हालाँकि वो किनारा भी शायद ऐसा ही होगा, पर यह उत्कण्ठा तो स्वतः ही जगी थी।

मैं यमुना के किनारे पर खड़ा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था। उसमें केवल ठंडापन ही नहीं, बल्कि प्रकृति का एक सुकून महसूस होता था। एक नाव किनारे पर मिट्टी में पड़ी थी जिसका कुछ हिस्सा बाहर दिख रहा था। मैं उस सुखद अहसास को महसूस करने के लिए वहीं बैठ गया। 

अब सूरज डूब चला था, नैनी पुल की लाइटें जल गईं थीं जिन्होंने यमुना के जल में सतरंगी आभा को बिखेर दिया था। ठंड बढ़ने लगी थी और मैं एक सुंदर अहसास को समेटकर वापस घर की तरफ़ जाने लगा।

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