यादों के संग

01-04-2020

यादों के संग

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 153, अप्रैल प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

तेरी राहों का अन्वेषी हूँ,
अकेला ही
फिरता रहता हूँ,
चलता रहता हूँ।
कभी उधर कभी इधर
तेरी यादों को ले संग।


सोया रहता हूँ
ख़ुद को समेटे हुए,
खुले आसमान के तले
तेरी यादों को ले संग ।
कोई पूछता है तो
बोल देता हूँ,
टूट कर बिखर गया हूँ
तेरे दिखाए हुए
ख़्वाबों संग।


तेरी राहों का प्रहरी हूँ
बैठा रहता हूँ,
ज़मीन पर
बिछी हुई,
मिट्टी को ओढ़ कर।
कोई पूछता है तो
बोल देता हूँ,
राख हो गया हूँ
तेरे दिखाए हुए
अफ़सानों के संग।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
बाल साहित्य कविता
सामाजिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में