वक़्त

01-08-2021

वक़्त

सतीश ’निर्दोष' (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

ज़िंदगी का हर पहलू दिखाता हमें वक़्त है
हों जो हम परेशां कभी तो बहलाता हमें वक़्त है।
दो साथी गर बिछड़ जाएँ जीवन के किसी मोड़ पर
उन सच्चे प्रेमियों को फिर मिलाता भी तो वक़्त है॥
 
तुम रह गए जो तन्हा तो घबराने कि क्या बात है
तन्हाइयों को झेलना सिखाता भी तो वक़्त है।
क्या हुआ जो आज यूँ ग़लतफ़हमी कुछ हो गईं
सही वक़्त आने पे इसको मिटाता भी तो वक़्त है॥
 
'निर्दोष' हो तुम फिर क्यों हो ज़िंदगी से यूँ कटते
बुझी शमा को फिर से रोशन बनाता भी तो वक़्त है।
मिल ना पाते हों आज जो किसी भी वज़ह से उन 
एहसासों को जज़्बातों से मिलाता भी तो वक़्त है॥

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