वो माँ

जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’  (अंक: 167, अक्टूबर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

तुम भूल गए
जब माँ ने गोदी में
तुम्हें उठाया था।
भूल गए जब माँ ने
प्यारी सी झप्पी देकर
तुम्हें सुलाया था।
 
तुम भूल गए जब माँ ने
तुमको चलना सिखलाया था।
तुम भूल गए जब माँ ने
अमृत सा दूध पिलाया था।
 
तुम भूल गए जब माँ की
मीठी लोरी कानों में गूँजी थी।
तुम भूल गए वह स्नेहमयी
परिवार ही जिसकी पूँजी थी।
 
उसने सब प्यार दिया तुमको
कितना तुमको दुलराया है।
कितने तुम आज स्वार्थरत हो
उस माँ को भी बिसराया है।
 
कितने निर्दयी हुए हो तुम
माँ को न तनिक भी याद किया
माँ को वृद्धाश्रम छोड़ दिया
तुमने कैसा यह पाप किया?
तुम भूल गए . . .॥

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