विश्वास के अंकुर

15-05-2008

विश्वास के अंकुर

राकेश मिश्रा

रूप मोहक नहीं है
गन्ध मादक नहीं है
रस उपयोगी नहीं है
फिर, ये विश्वास के पुष्प किस काम के?

क्या केवल रति ही अन्तिम कसौटी है,
जीवन सौन्दर्य के मापदण्ड हेतु?
गन्ध और रस क्या इतने महत्वपूर्ण हैं?
प्राभ भरे, साँस लेते, बचपन से भी ज्यादा?

नहीं।
ये नन्हे साधक अपनी तापस प्रवृत्ति से
कुछ न कुछ तो सार्थक करेंगे ही।
इनकी क्यारी में मानस बालपन को
खुलकर साँस लेने देते हैं
पीड़ित और सशंकित मानवत को
ये फूल ही सिखायेंगे
मानवीय गरिमा के साथ जीने का
अद्‌भुत, अदम्य और आवश्यक पाठ।

एक दूसरे की आँखों में
आँखें डालकर देखने का साहस, और
एक दूसरे के प्रति सहज विश्वास का
सुगम एवं सरल पाठ भी
यही विश्वास के पुष्प पढ़ायेंगे
सजीव, मूर्त रूप में।

इसी सन्दर्भ में, एक बात और
जब हमें ज़रूरत इन विश्वास के पौधों की है
हमारा साध्य भी इन्हीं से जुड़ा है
फिर, सपनों के रूमानी बाग में
आशा के भड़कीले, परन्तु प्राणहीन
बीजों के अंकुरित न हो पाने का
अफ़सोस कैसा? और क्यों?

अरक्षित, असाधारण और अनन्य
विश्वस के अंकुर ही तो
अपने गर्भ में समेटे हैं
भूत का दीर्घ इतिहास
वर्तमान की अदम्य जिजीविषा, और
भविष्य का सम्पूर्ण अस्तित्व।

मानवता, सहेज कर रखो इन्हें तुम
क्योंकि सहज, सामान्य पर दुर्लभ से हैं ये
विश्वास के अंकुर

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