विनाश और रचना

30-01-2016

विनाश और रचना

नवल पाल प्रभाकर

ब्रह्माण्ड में
पृथ्वी से
कण कितने
हर कण में
टूट-फूट
बनता-बिगड़ता
हर कण पर
करोड़ों जीव
जीवन यापन कर
इसके साथ ही
लोप हो जाते
मिल जाते
धूलि में इसके
समा जाते
इसके अन्दर
कणों का क्या?
बनना और
बिगड़ना।
उनकी तो बस
ये प्रकृति है।
जन्म लेते हैं
और इसके साथ
एक दिन
जब पृथ्वी पर
आती है
प्राकृतिक आपदा
तब सारी धरती
होती है जलमग्न
पूरी धरा पर
चारों तरफ़
पानी ही पानी
देखने को
एक रंग में रँगी
धरा का
एक रूप
काली का
रूद्र-सा रूप
धर कर धरती
नाच उठती है।
बनकर यह नटराज
मस्त-मगन
हो जाती है।
पैरों तले
न जाने कितने
जीव रुंद जाते हैं।
फिर एक दिन
पृथ्वी पर
जीव बचाने हेतु
या फिर नई बस्ती
बसाने के लिए
काली के
कोमल चरणों में
स्वयं पसर
जाते हैं
फिर से
जीवन बस
जाता है।
चारों तरफ
होने वाला पानी
सूख जाता है।
नव यौवन
आता है फिर
झूमने लगती है,
धरती फिर से
गूँज उठती हैं
चहुं ओर दिशायें
हरी-भरी होकर फिर
खेती इस पर लहलाये।

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