विभोम स्वर में प्रकाशित सुमन कुमार घई की कहानी ’छतरी’ बनी चर्चा का विषय

01-08-2021

विभोम स्वर में प्रकाशित सुमन कुमार घई की कहानी ’छतरी’ बनी चर्चा का विषय

डॉ. सुधा ओम ढींगरा (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

खण्डवा, मध्य प्रदेश में शिवना प्रकाशन का उप-कार्यालय है। जिसके प्रभारी श्री शैलेन्द्र शरण हैं। वहीं वीणा संवाद एक साहित्यिक ग्रुप है, जिसके कई सदस्य हैं। कार्यालय में विभोम स्वर की बहुत सी पत्रिकाएँ सदस्यों द्वारा मँगवाई जाती हैं। विभोम स्वर के अप्रैल-जून अंक 2021 में कैनेडा के प्रतिष्ठित कथाकार सुमन कुमार घई की कहानी 'छतरी' छपी थी। छतरी कहानी पर वीणा संवाद खण्डवा के पटल पर सदस्यों द्वारा सार्थक संवाद हुआ। जिसके संयोजन थे श्री गोविंद शर्मा और समन्वयक थे श्री शैलेन्द्र शरण। कई सदस्यों ने 'छतरी' कहानी पर समीक्षा आलेख पढ़े और श्री शैलेन्द्र शरण ने प्रत्येक समीक्षा आलेख पर विशेष टीप देकर संवाद को रोचक बना दिया। प्रस्तुत हैं सबके समीक्षा आलेख और समन्वयक श्री शैलेन्द्र शरण की टिप्पणी।

— सुधा ओम ढींगरा

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श्री गोविंद शर्मा

श्री शैलेन्द्र शरण

गरिमा चौरे—

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समय-समय पर यह तथ्य सिद्ध होता ही रहता है। सामाजिक जीवन में जब तक मनुष्य के अहंकार की तुष्टि होती रहती है उसे अपने जीवन में अन्य लोगों का महत्व ज्ञात नहीं हो पाता है लेकिन जब कोई व्यक्ति कहीं एकाकी हो तब उसे परिवार तथा समाज का मूल्य ज्ञात होता है। 

इस कहानी में भी कथानायक, स्वकेंद्रित जीवन जीने के आदी हैं लेकिन पत्नी की मृत्यु के एक लंबे समय उपरांत जब एकाकी जीवन की नीरसता खलने लगती है, तब भी अपने परिवार के साथ रहने में उन्हें एक बाधा, एक हिचक अनुभव होती है। 

मंदिर में जाकर धीरे-धीरे, लोगों से सहज होने और उनसे अपने अहसास बाँटने को छतरी के आदान-प्रदान के प्रतीक रूप में कुशलता से प्रयुक्त किया गया है। 

अंत का एक घुटन भरा दुखांत न होकर एक उजास भरा सुखांत होना इस कहानी को इसी कथानक पर बनी अन्य कहानियों से भिन्न बनाता है। 

लेखक महोदय को एक बढ़िया कहानी के लिए हार्दिक बधाई।

शैलेन्द्र शरण—

आ. गरिमा चौरे जी आपकी टिप्पणी का स्वागत है । इस कहानी के अंत के कई कोण हो सकते थे किंतु लेखक की तारीफ़ करनी होगी कि इस कहानी को सार्थक और सुकून वाला अंत दिया । 

कहानी एक अंतर्मुखी व्यक्ति के बदलने की सुखद अनुभूति है। अकेलेपन को कहानी में बड़ी ख़ूबसूरती से उकेरा गया है। धन्यवाद आपका! 

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कुँअर उदयसिंह अनुज—

श्री सुमन कुमार घई की कहानी पढ़ी। कहानी का जो ताना-बाना सुरेंद्र जी के आसपास बुना गया है उससे ज़ाहिर है कि व्यक्ति कितना भी संपन्न हो, रिज़र्व नेचर का हो, स्वयम् को विशिष्ट समझता हो लेकिन जीवन में एक समय ऐसा आता है जब वह इस एकाकीपन से ऊबकर सामाजिक होना चाहता है। लोगों से बातचीत करना चाहता है, मिलना जुलना चाहता है। सुरेंद्र जी इतने सख़्त मिज़ाज हैं कि वे अपने बेटों, बहुओं और पोते-पोतियों से भी दूर रहे। लेकिन जानबूझकर अपना नाम पता लिखी छतरी को यात्रा के दौरान भूलकर लोगों से जुड़ने की शुरुआत करते हैं और उनकी यह सामाजिक होने की युक्ति मंदिर वाले शर्मा जी से मिलकर पूर्ण होती है; जहाँ वे अपना छतरी को स्थायी रूप से सभी लोगों के उपयोग के लिए छोड़कर अपनी सामाजिक होने की यात्रा का समापन करते हैं और अपने लेखा ज्ञान का उपयोग मंदिर के हिसाब-किताब में करके वहाँ समय व्यतीत करते हैं।

छतरी पर नाम पते का टैग लगाकर भूलना और यह उम्मीद रखना कि छतरी लौटकर उन तक अवश्य आयेगी और वे इस बहाने लोगों से मिलने-जुलने लगेंगे, यह युक्ति विदेश में ही सफल हो सकती है। हमारे देश में यह प्रयोग कभी भी सफल नहीं हो सकता। इसीलिए कहानीकार ने कैरेक्टर और स्थान भी विदेश ही चुना है।

कहानी में यह छतरी के प्रयोग का नयापन इसे रोचक बनाता है। यह रोचकता अंत तक बनी रहती है। उन्हें बधाई!

शैलेन्द्र शरण—

सही कहा आपने कुँअर उदय सिंह 'अनुज' जी। हर व्यक्ति अपने स्वभाव से लाचार होता है। जब तक स्वभाव का व्यक्ति न मिले दोस्ती भी नहीं करता। अनुकूल काम न मिले तो फ़ालतू रहना पसंद करता है। ऐसे ही हैं इस कहानी के नायक सुरेंद्र जी। 

एक अलग तरह की यह कहानी है भी बड़ी रोचक। आम तौर पर ऐसा स्वभाव देखने को कम मिलता है किंतु रहता है अपने में विशिष्ट। इसलिए यह कहानी इतना प्रभावित करती है । सादर धन्यवाद आपका।

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श्याम सुंदर तिवारी—

यह कहानी बिल्कुल नये आयाम छूती है। कहानी कनाडा में बसे एक समृद्ध परिवार की है। जिसमें सुरेन्द्र नाथ वर्मा एक समृद्ध सी ए हैं जोकि रिटायर्ड हैं। उनके दो लड़के हैं भरा-पूरा परिवार है। दो वर्ष पहले उनकी पत्नी की मृत्यु हो जाती है। वे अकेले हो जाते हैं। वे बहुत ही स्वाभिमानी और अनुशासित व्यक्ति हैं। रिटायरमेंट के बाद वे स्वतन्त्र और अपने अनुशासन के साथ रहना चाहते हैं। उनके लड़के भी वेल-टू-डू हैं। और माँ के न रहने पर उन्हें अपने साथ रखना चाहते हैं। किन्तु वर्मा जी उनके साथ नहीं जाते हैं। अपने घर में ही अकेले रहने लगते हैं। कुछ दिनों में ही उन्हें अकेलापन और बुरा लगने लगता है। और बारिश आ जाती है जिससे बचने के लिए वे छतरी साथ रखने लगते हैं।

असल में यही छतरी इस कहानी की शेडो हीरो है। जिसके कारण कई लोगों से उनकी मुलाक़ात होती है। और अंत में एक ग़रीब मन्दिर के व्यवस्थापक शर्मा जी से मुलाक़ात होती है।शर्मा जी मन्दिर के हिसाब-किताब के बहाने उन्हें अपना दिली-दोस्त बना लेते हैं। सी ए होने के नाते वे मन्दिर की वित्तीय व्यवस्था सम्हाल लेते हैं। जिसकी बदौलत मन्दिर में आने वाले उन सभी सैकडों लोगों के वे अंकल बन जाते हैं। वे लोग शर्मा जी और वर्मा जी का पूरा ख़्याल रखते हैं। उन्हें महसूस होता है कि जैसे उनका बहुत बड़ा परिवार है। जो उनकी ख़ुशी का कारण है। एक दिन जब शर्मा जी उन्हें छतरी साथ ले जाने की याद दिलाते हैं। तब वे कहते हैं इसे यहीं टँगी रहने दो जब जिसको ज़रूरत होगी इसका उपयोग कर लिया करेगा ।

कहानी की इस अंतिम पंक्ति में लेखक ने बहुत गूढ़ अर्थ डाल कर कहानी को शिखर पर पहुँचा दिया है। संदेश यह कि एक अनुभवी बुद्धिमान और विशेष शिक्षित बुज़ुर्ग समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। यदि समाज चाहे तो उसका अपनी कठिनाइयों में उचित उपयोग कर उसके अनुभव का बेहतर लाभ ले सकता है।

विशेष कहन, मनोहारी शिल्प और उद्देश्यपूर्ण कथ्य के साथ कहानी पठनीय और आज के बुज़ुर्गों व बच्चों के लिए शिक्षाप्रद है।

शैलेन्द्र शरण—

वाह, श्याम सुन्दर तिवारी जी आपकी टिप्पणी में पूरी कहानी सिमट आई है। सुरेंद्र नाथ जी की ख़ुद्दारी देखिए कि बावजूद अकेलेपन के वे बच्चों के घर रहने फिर भी नहीं जाते। सिर्फ़ इसलिए कि मुझे जितनी स्वतंत्रता चाहिये उतनी ही बच्चों को भी मिल। किसी जो उनके कारण कोई दिक़्क़त न आये।

कथानक, शिल्प, भाषा के स्तर पर एक अच्छी कहानी पर सार्थक चर्चा के लिये आपका धन्यवाद।

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अरुण सातले—

सुमन कुमार घई जी की कहानी एक ऐसे इंसान जिनका नाम सुरेन्द नाथ वर्मा है, की कहानी है। सुरेंद्र जी रिटायर्ड व्यक्ति हैं। दो बेटे-बहु दोनों के दो-दो बच्चे होने के बावजूद वे अकेले रहते हैं। पत्नी का स्वर्गवास होने को दो वर्ष बीत चुके हैं। अकेले रहने का एक मात्र कारण अपनी निजी स्वतंत्रता में किसी का हस्तक्षेप उन्हें बर्दाश्त नहीं है। उनकी दिनचर्या भी एकदम संतुलित। न किसी से निरर्थक बातें करना और न ही किसी से मेल मुलाक़ात। इस प्रकार हम देखें तो यह कहानी उस आदमी की है जो स्वकेन्द्रित होने के साथ ही अल्पभाषी भी है। अकेलेपन और एक सी दिनचर्या उन्हें नीरस लगने लगती है। धीरे-धीरे वे अपनी दिनचर्या में परिवर्तन लाते हैं . . . घूमने जाते समय छतरी जिस पर उनके नाम की चिट लगी है, रखने लगते हैं। यही छतरी दूसरे लोगों से जुड़ने का माध्यम बन जाती है। अर्थात्‌ छतरी कहीं भूलने लगते हैं, तो लोग उन्हें उनकी छतरी का ध्यान दिलाते हैं। इतना सा संवाद होने पर भी उन्हें बहुत अच्छा लगने लगता है। वे छतरी को हमेशा पास रखने लगते हैं, ताकि उस बहाने दूसरों से संवाद होता रहे। इसी क्रम में वे नवरात्र पर्व पर मंदिर जाते हैं . . . मंदिर प्रबंधक शर्माजी से झिझकते हुए चाय के बहाने मेल-मुलाक़ात होती है . . . और एक दिन वे मंदिर के कंप्यूटर में दानराशि एट्रीज़ करने का काम लेते हुए मंदिर जाने को अपनी दिनचर्या बना लेते हैं। उनकी छतरी वहीं रखने लगते हैं ताकि बारिश आने पर वह किसी के काम आ सके।

व्यक्ति अपने स्वनिर्मित घेरे बंदी से जब ऊबने लगता है तब वह स्वयं छुटकारा पाना चाहता है, क्योंकि वह समूह में रहने वाला सामाजिक प्राणी है; इसलिए अकेलेपन के संत्रास से वह मुक्त होना चाहता है। सुरेन्द्र नाथ जी पर केंद्रित यह कहानी अल्पभाषी और स्वकेन्द्रित इंसानों को एक ऐसा संदेश देती है, जो प्रत्येक के लिए महत्वपूर्ण है।

शैलेन्द्र शरण—

आ. अरुण सातले जी इस कहानी में कथानक ही सिर्फ़ अंतर्मुखी स्वभाव से बाहर आने को लेकर है। किंतु कई सारी छोटी-छोटी घटनाएँ रेखांकित करने योग्य हैं। पहले तो एकाकीपन से ऊबने के पहले का घटनाक्रम और उनकी मानसिक स्थिति। फिर धीरे-धीरे अकेलेपन से बाहर आने के उपक्रम तथा अंत में उनकी ख़ुशी। यक़ीनन एक बढ़िया मनोवैज्ञानिक कहानी है जिसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है। सादर आभार आपका।

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दर्शना जैन—

किसी को अकेलापन काटने को दौड़ता है तो किसी को वही अकेलापन बड़ा रास आता है। कई लोग अकेलेपन को दूर करने दोस्तों के बीच जाते हैं और कुछ इसलिये दोस्त बनाने से परहेज़ रखते हैं ताकि उनकी निजता में ख़लल न पड़े। इन्हीं कारणों से सुरेन्द्रनाथ जी ने पत्नी के स्वर्ग सिधारने के बाद बेटों के हर तरह से मनाने के बावजूद उनके साथ जाने को तैयार नहीं हुए। 

भले ही सुरेन्द्रनाथ जी जैसे शख़्स को अकेलेपन के खोल में रहना पसंद हो लेकिन कभी न कभी उस खोल से बाहर आने का मन कर ही जाता है परंतु एक आदत से दूसरी आदत की ओर जाना सहज नहीं है। तभी तो वे चाहकर भी अपने बच्चों के पास न जा सके और ना ही सीनियर सिटीज़न संस्था को अपना सके।

नवरात्र पर सुरेन्द्रनाथ जी को पत्नी का याद आना, फिर उनका मंदिर जाना, आँकड़ों से प्रेम की वज़ह से मंदिर के काम से जुड़कर मंदिर को ही घर जैसा बना लेना यह सब मन को छू गया।

शैलेन्द्र शरण—

प्रिय दर्शना जैन जी आप ख़ुद भी एक कथाकार हैं आपने इस कहानी के मर्म को ठीक तरह से रेखांकित किया है। धन्यवाद आपका।

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 रघुवीर शर्मा—

संदर्भ पत्रिका “विभोम स्वर” में प्रकाशित कथाकार सुमन कुमार घई जी की कहानी “छतरी” मनुष्य के मन के विज्ञान पर आधारित मनोवैज्ञानिक कहानी है। भीतर और बाहर की संधि रेखा पर खड़ी यह कहानी अंतर्मुखी से बहिर्मुखी हो जाने की यात्रा है। अंतर्मुखी व्यक्ति केवल अपने से ही संवाद करता है, बाहर वह मात्र औपचारिक ही रहता है। आवश्यक संक्षिप्त संवाद करने वाले सुरेंद्र नाथ जीवन के अंतिम पड़ाव पर इस एकाकीपन से विचलित हो जाते हैं। इस एकाकीपन की कारा से बाहर निकल वह उस सुख का अनुभव करना चाहते हैं जिससे अभी तक सर्वथा वंचित ही रहे हैं। बहुत सुविधाजनक किंतु एकाकी दिनचर्या से ऊबकर वह एक छतरी के माध्यम से जनजीवन से जुड़ते हैं। छतरी पर अपना पता लिखकर, उसे जानबूझ कर छोड़ा आना और फिर वापस लाने वाले व्यक्ति से संवाद स्थापित होना जैसी कई घटनाओं के माध्यम से वह बहिर्मुखी हो जाने का सुख अनुभव कर प्रसन्न होते हैं। कथा के अंत में मंदिर में प्रतिदिन जाकर, व्यवस्था में सहयोगी होकर, लोगों से मिलकर और छतरी को सभी के उपयोग के लिए देकर वे एकाकीपन के आवरण को उतार फेंकते हैं। यह सब छतरी का ही कमाल है। ऐसी छतरी हम सब के पास होनी चाहिए।

सहज सरल भाषा और संक्षिप्त कथोपकथन के माध्यम से बुनी गई कहानी आकर्षक और पठनीय है। इस हेतु कथाकार घई जी का हार्दिक अभिनंदन!

शैलेन्द्र शरण—

आ. रघुवीर शर्मा जी इस कहानी का मुख्य बिंदु छतरी ही है जो नायक के एकाकीपन को तोड़ने में मुख्य भूमिका निभाती है। अंत में वही छतरी कई लोगों के उपयोग की वस्तु बन जाती है। लेखक को साधुवाद। 

4 टिप्पणियाँ

  • 7 Aug, 2021 11:49 AM

    जितनी सार्थक कहानी है, उतनी ही सारगर्भित समीक्षाएं भी. सभी अपने क्षेत्र के दिग्गज हैं, सभी का अभिवादन तथा बधाई

  • 2 Aug, 2021 05:08 PM

    साहित्य कुंज पटल पर वीणा संवाद खंड़वा द्वारा विभोम स्वर में प्रकाशित "छतरी"कहानी की समीक्षात्मक चर्चा का प्रकाशन सराहनीय है.इस हेतु साहित्य कुंज परिवार का अभिनन्दन.सभी सम्मानीय समीक्षकों का साधुवाद.

  • आदरणीय सुमन घई जी की कहानी छतरी की विभिन्न दृष्टिकोणों से अच्छी समीक्षा की है विद्वत जनों ने। इस कहानी में स्वकेंद्रित व्यक्ति के अकेलापन की यथार्थ रूपरेखा प्रस्तुत की गई है। सुमन जी को बधाई तथा सभी समीक्षकों को साधुवाद।

  • साहित्य कुंज ने विभोम स्वर की कहानी छतरी लेखक सुमन कुमार घई की कहानी पर सार्थक विमर्श (वीणा सम्वाद) को प्रकाशित किया है।सुखद अनुभूति हुई । धन्यवाद। श्याम सुंदर तिवारी खण्डवा मप्र.

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