वेदना का व्याख्याकार - 2

06-06-2017

वेदना का व्याख्याकार - 2

विकास वर्मा

मूल कहानी – दि इंटरप्रेटर ऑफ मैलडीज़ (अंग्रेज़ी)
लेखिका : झुम्पा लाहिरी 
अनुवादक : विकास वर्मा

भाग - 2

गाड़ी स्टार्ट करने से पहले मिस्टर कापसी ने पीछे की ओर जाकर यह सुनिश्चित किया कि पीछे के दोनों दरवाज़ों में अन्दर की तरफ़ लगे लॉक ठीक से बन्द हैं। जैसे ही कार चलने लगी, छोटी बच्ची अपनी तरफ़ लगे लॉक से खेलने लगी, कुछ ज़ोर लगाकर उसे आगे-पीछे करते हुए, लेकिन मिसेज़ दास ने उसे रोकने के लिए कुछ नहीं कहा। वह पिछली सीट के एक कोने में सिमटी हुई बैठी थीं, किसी से भी अपने मुरमुरों के लिए पूछे बिना। रॉनी और टीना उनके अगल-बगल बैठे थे, चमकदार हरी च्यूइंग गम चबाते हुए।

"देखो," बॉबी ने कहा जब कार ने रफ़्तार पकड़नी शुरू की। उसने सड़क के किनारे कतार में खड़े लम्बे पेड़ों की तरफ़ अपनी उँगली से इशारा किया, "देखो।"

"बन्दर!" रॉनी चिल्लाया। "वाह!"

वे शाखों पर समूह में बैठे थे, चमकदार काले चेहरों, चाँदी जैसे शरीरों, सीधी भौहों और कलगीदार सिरों के साथ। उनकी लम्बी धूसर पूँछ पत्तियों के बीच कई सारी रस्सियों की तरह लटक रही थीं। गुज़रती हुई कार को घूरते हुए, कुछ काले सख़्त हाथों से ख़ुद को खुजा रहे थे, या फिर अपनी टाँगों को हिला रहे थे।

"हम इन्हें हनुमान बुलाते हैं," मिस्टर कापसी बोले। "ये इस जगह काफ़ी तादाद में पाए जाते हैं।" जैसे ही उन्होंने यह बात कही, तभी एक बन्दर उछलकर सड़क के बीचों-बीच आ गया, जिससे मिस्टर कापसी को अचानक ब्रेक लगाना पड़ा। एक दूसरा बन्दर सामने कार के ऊपर कूदा, फिर उछल कर भाग गया। मिस्टर कापसी ने हॉर्न बजाया। बच्चे ख़ुश होने लगे थे। हैरानी से उनकी साँस अटक रही थी और उन्होंने अपने आधे चेहरे अपने हाथों में छिपा लिए थे। उन्होंने चिड़ियाघर के बाहर बन्दरों को कभी नहीं देखा था, मिस्टर दास ने बताया। उन्होंने मिस्टर कापसी से कार रोकने के लिए कहा ताकि वह एक तस्वीर ले सकें।

जब मिस्टर दास अपना टेलीफोटो लेंस ठीक कर रहे थे, मिसेज़ दास ने अपने स्ट्रॉ बैग को टटोला और नेल-पॉलिश की एक बेरंग बोतल बाहर निकाली, जिसे उन्होंने अपनी तर्जनी के नाखून पर लगाना शुरू कर दिया।

छोटी बच्ची ने एक हाथ आगे कर दिया। "मेरे भी। मम्मी, मेरे भी लगा दो।"

"छोड़ो मुझे," मिसेज़ दास ने अपने नाखून पर फूँक मारते हुए और अपने शरीर को थोड़ा मोड़ते हुए कहा। "तुम सब गड़बड़ कर रही हो।"

छोटी बच्ची गुड़िया की प्लास्टिक बॉडी पर पहनाई गई पोशाक के बटन खोल-बन्द कर अपना समय बिताने लगी।

"सब तैयार है," मिस्टर दास ने लेंस की कैप बदलते हुए कहा।

धूल भरी सड़क पर तेज़ भागते हुए कार काफ़ी खड़खड़ कर रही थी, जिस कारण कभी-कभी वे सब अपनी सीट से उछल जाते थे, लेकिन मिसेज़ दास अपने नाखूनों पर पॉलिश लगाती रहीं। मिस्टर कापसी ने एक्सिलेरेटर पर दबाव थोड़ा कम किया, इस उम्मीद में कि इससे गाड़ी अधिक सहज रूप में चलेगी। जब उन्होंने गियर बदलने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, तो आगे की सीट पर बैठे बच्चे ने अपने चिकने घुटनों को थोड़ा घुमाते हुए उनके लिए जगह बना दी। मिस्टर कापसी ने ध्यान दिया कि यह बच्चा बाक़ी बच्चों की तुलना में कुछ कमज़ोर था।

"डैडी, इस कार में भी ड्राइवर ग़लत साइड में क्यों बैठा है?" बच्चे ने पूछा।

"यहाँ सब ऐसे ही करते हैं पागल," रॉनी ने कहा।

"अपने भाई को पागल मत कहो," मिस्टर दास ने कहा। वह मिस्टर कापसी की ओर मुड़े। "अमेरिका में, आपको पता ही है......इससे ये कंफ्यूज़ हो जाते हैं।"

"जी हाँ, मुझे अच्छी तरह से पता है," मिस्टर कापसी बोले। जैसे ही वे सड़क के बीच एक पहाड़ी पर पहुँचे, उन्होंने पूरी कुशलता के साथ दोबारा गियर बदलकर गाड़ी की रफ़्तार बढ़ाई। "मैंने डलास में देखा है, स्टीयरिंग व्हील बाँयी तरफ़ होता है।"

"डलास क्या है?" टीना ने अपनी बिना कपड़ों की गुड़िया मिस्टर कापसी के पीछे वाली सीट पर फेंकते हुए पूछा।

"यह बन्द हो गया था," मिस्टर दास ने स्पष्ट किया। "यह एक टेलीविज़न शो है।"

वे सब भाई-बहन की तरह थे, मिस्टर कापसी ने सोचा, जब वे खजूर के पेड़ों की एक कतार के पास से गुज़र रहे थे। मिस्टर दास और मिसेज़ दास बड़े भाई और बहन की तरह बर्ताव करते थे, माँ-बाप की तरह नहीं। ऐसा लगता था जैसे उन बच्चों की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ एक दिन के लिए ही उनके पास थी; यह विश्वास करना मुश्किल था कि वे अपने अलावा किसी और बात के लिए भी नियमित तौर पर ज़िम्मेदार थे। मिस्टर दास अपनी लेंस कैप, और अपनी टूर बुक को थपकी दे रहे थे, और कभी-कभी अपने अंगूठे के नाखून से पन्नों को पलटते थे जिससे फड़फड़ की आवाज़ होती थी। मिसेज़ दास ने अपने नाखूनों पर पॉलिश लगाना जारी रखा। उन्होंने अभी तक अपना धूप का चश्मा नहीं उतारा था। बीच-बीच में टीना ज़िद शुरू कर देती थी कि उसे भी नेल-पॉलिश लगवानी है, और इसलिए एक बार मिसेज़ दास ने अपने स्ट्रॉ बैग में बोतल वापस रखने से पहले झटके से थोड़ी-सी पॉलिश छोटी बच्ची की उँगली पर लगा दी।

"यह एयर-कंडीशंड कार नहीं है?" उन्होंने अभी भी अपने हाथ पर फूँक मारते हुए पूछा। टीना की तरफ़ की खिड़की टूटी हुई थी, इसलिए उसे नीचे नहीं किया जा सकता था।

"शिकायत मत करो," मिस्टर दास बोले। "इतनी गर्मी नहीं है।"

"मैंने तुमसे एयर-कंडीशनिंग वाली कार के लिए बोला था," मिसेज़ दास बड़बड़ाती रहीं। "राज तुम क्यों ऐसा करते हो, सिर्फ़ कुछ पैसे बचाने के लिए ही ना। क्या बचत हो जाएगी इससे, पचास सेंट?"

उनके बोलने का ढंग वैसा ही लगा जैसा मिस्टर कापसी ने अमेरिका के टेलीविज़न कार्यक्रमों में सुना था, हालाँकि यह डलास जैसा नहीं था।

"इससे थकान नहीं होती, मिस्टर कापसी, रोज़ एक ही चीज़ लोगों को दिखाते रहना?" मिस्टर दास ने पूरे रास्ते अपनी ख़ुद की खिड़की नीचे करते हुए पूछा। "हे, क्या आप कार को रोकेंगे। मुझे इस आदमी की एक तस्वीर लेनी है।"

मिस्टर कापसी ने सड़क के किनारे गाड़ी रोक दी, जब मिस्टर दास एक आदमी की तस्वीर लेने लगे। वह नंगे पैर था, उसके सिर पर एक गंदी पगड़ी बँधी थी, और वह अनाज के बोरों से लदी गाड़ी के ऊपर बैठा था जिसे बैलों का एक जोड़ा खीच रहा था। आदमी और बैल, दोनों बेहद कमज़ोर थे। पिछली सीट पर मिसेज़ दास, दूसरी खिड़की से बाहर आसमान की तरफ़ देख रही थीं जहाँ लगभग पारदर्शी बादल तेज़ी से एक-दूसरे के आगे से गुज़र रहे थे।

"दरअसल, मुझे तो इससे ख़ुशी ही मिलती है," मिस्टर कापसी ने कहा, जब वे अपने रास्ते पर आगे बढ़ने लगे। "सूर्य मन्दिर मेरी पसन्दीदा जगहों में से है। इस तरह यह मेरे लिए एक ईनाम के जैसा ही है। मैं सिर्फ़ शुक्रवार और शनिवार को टूर पर ले जाता हूँ। सप्ताह के दौरान मेरे पास दूसरी नौकरी है।"

"ओह? कहाँ?" मिस्टर दास ने पूछा।

"मैं एक डॉक्टर के ऑफ़िस में काम करता हूँ।"

"आप डॉक्टर हैं?"

"मैं डॉक्टर नहीं हूँ। डॉक्टर के यहाँ काम करता हूँ। दुभाषिए के तौर पर।"

"डॉक्टर को दुभाषिए की क्या ज़रूरत हो सकती है?"

"उनके यहाँ कई गुजराती मरीज़ आते हैं। मेरे पिता गुजराती थे, लेकिन इस इलाक़े में ज़्यादा लोग गुजराती नहीं बोलते, जिनमें डॉक्टर भी शामिल है। और इसीलिए, डॉक्टर ने मुझे अपने यहाँ काम करने के लिए कहा ताकि मैं मरीज़ों की बातों का अनुवाद कर सकूँ।"

"यह काफ़ी दिलचस्प है। मैंने इस तरह की बात पहले कभी नहीं सुनी," मिस्टर दास बोले।

मिस्टर कापसी कन्धे उचकाते हुए बोले," यह किसी भी दूसरी नौकरी जैसा ही है।"

"लेकिन कितना रोमांटिक है," मिसेज़ दास ने अपनी लम्बी चुप्पी तोड़ते हुए इस तरह कहा जैसे कोई सपना देख रही हों। उन्होंने अपना गुलाबी-भूरे रंग का धूप का चश्मा हटाया और उसे ताज़ की तरह अपने सिर के ऊपर सजा दिया। पहली बार, गाड़ी के रियरव्यू मिरर में, उनकी आँखें मिस्टर कापसी की आँखों से मिलीं: पीली, कुछ छोटी आँखें, स्थिर लेकिन मुरझाई हुई नज़रों से ताकती हुईं।

मिस्टर दास ने गर्दन आगे कर मिसेज़ दास की तरफ़ देखा। "इसमें रोमांटिक क्या है?"

"मुझे नहीं पता। कुछ है।" उन्होंने एक पल के लिए अपनी भौंहों को मिलाते हुए कंधे उचका दिए। "क्या आप च्यूइंग गम लेंगे, मिस्टर कापसी?" उन्होंने चेहरे पर चमक लाते हुए पूछा। उन्होंने अपना स्ट्रॉ बैग टटोला और हरी और सफ़ेद धारियों वाले काग़ज़ में लिपटी एक छोटी चौकोर च्यूइंग गम उन्हें पकड़ा दी। जैसे ही मिस्टर कापसी ने च्यूइंग गम अपने मुँह में रखी, एक गाढ़ा मीठा तरल पदार्थ उनकी जीभ पर फट पड़ा।

"अपने काम के बारे में कुछ और बताइए, मिस्टर कापसी," मिसेज़ दास ने कहा।

"आप क्या जानना चाहेंगी, मैडम?"

"मुझे नहीं पता," उन्होंने मुरमुरे खाते हुए और सरसों के तेल को अपने मुँह के कोनों से जीभ से साफ़ करते हुए कंधे उचकाए। "अपने काम से जुड़ी कोई ख़ास बात बताइए।" वह वापस अपनी सीट पर बैठ गईं। उनका सिर सूरज की रोशनी में झुका हुआ था और उन्होंने आँखें बंद कर ली थीं। "जो कुछ भी वहाँ होता है मैं उसकी कल्पना करना चाहती हूँ।"

"ठीक है। एक दिन एक आदमी आया जिसके गले में दर्द था।"

"क्या वो सिगरेट पीता था?"

"नहीं। यह बहुत अजीब-सी बात थी। उसकी शिकायत थी कि उसे ऐसा महसूस होता है जैसे उसके गले में घास के लंबे टुकड़े अटक गए हैं। जब मैंने यह बात डॉक्टर को बताई तो वह ठीक दवाई लिख पाया।"

"यह बहुत अच्छा है।"

"जी," मिस्टर कापसी ने कुछ हिचकिचाहट के बाद सहमति प्रकट की।

"तो ये मरीज़ पूरी तरह से आप पर निर्भर हैं," मिसेज़ दास ने कहा।

"क्या मतलब? ऐसा कैसे हो सकता है?"

"मिसाल के तौर पर, आप डॉक्टर को बता सकते थे कि दर्द जलन जैसा है, घास के फँसने जैसा नहीं। मरीज़ को कभी यह पता नहीं चलता कि आपने डॉक्टर को क्या बताया है, और डॉक्टर को पता नहीं चलता कि आपने ग़लत बात बताई है। यह एक बड़ी ज़िम्मेदारी है।"

"हाँ, यहाँ आपकी ज़िम्मेदारी काफ़ी बड़ी है, मिस्टर कापसी," मिस्टर दास ने सहमति जताई।

मिस्टर कापसी ने अपने काम के बारे में ऐसे तारीफ़ वाले नज़रिए से कभी नहीं सोचा था। उनके लिए तो यह एक बेकार का काम था। लोगों की बीमारियों की व्याख्या करना, हड्डियों में आई तरह-तरह की सूजन, पेट और आँत के असंख्य मरोड़, लोगों की हथेलियों के धब्बे जो रंग, रूप और आकार बदलते थे, मेहनत से इन सबका अनुवाद करना, उन्हें इन सब में कुछ भी तारीफ़ लायक़ नहीं लगता था। डॉक्टर, जो लगभग उनकी आधी उम्र का था, बैल-बॉटम पतलून पहनने का शौकीन था और कांग्रेस पार्टी के बारे में बेतुके चुटकुले सुनाया करता था। वे दोनों एक पुराने छोटे-से अस्पताल में साथ काम करते थे जहाँ मिस्टर कापसी की करीने से तैयार की गई पोशाक गर्मी में पसीने के कारण उनके बदन से चिपक जाती थी, हालांकि पंखे की काली पड़ चुकी पंखुड़ियाँ उनके सिर के ऊपर लगातार घूमती रहती थीं ।

यह काम उनकी नाकामियों का संकेत था। अपनी जवानी के दिनों में वह विदेशी भाषाओं के एक समर्पित छात्र रहे थे और शब्दकोशों का एक विशाल संग्रह उनके पास था। उन्होंने राजनयिकों और ऊँची पदवी वाले अधिकारियों के लिए द्विभाषिए के रूप में काम करके, लोगों और राष्ट्रों के बीच मतभेद दूर करने का सपना देखा था, ऐसे विवादों को निपटाने का सपना जिसमें दोनों पक्षों को केवल वह ही समझ सकते थे। उन्होंने सारी पढ़ाई अपने दम पर की थी। उनके माता-पिता द्वारा उनकी शादी तय किए जाने से पहले, शाम के वक़्त, वह शब्दों के सामान्य इतिहास की सूची बनाया करते थे, और उनकी ज़िंदगी में एक ऐसा वक़्त भी था जब उन्हें पूरा विश्वास था कि मौक़ा मिलने पर वह अँग्रेज़ी, फ्रेंच, रूसी, पुर्तगाली और इटैलियन भाषाओं में बात कर सकते हैं। इनके अलावा, हिन्दी, बंगाली, उड़िया और गुजराती तो थीं ही। लेकिन अब चंद यूरोपीय लफ़्ज़ ही उन्हें याद रह गए थे, बस तश्तरी और कुर्सी जैसी चीज़ों के लिए कुछेक शब्द। अब केवल अँग्रेज़ी ही वह ग़ैर-हिन्दुस्तानी भाषा बची थी जिसे वह धाराप्रवाह बोल लेते थे। मिस्टर कापसी जानते थे कि यह कोई बहुत भारी प्रतिभा नहीं थी। कभी-कभी इस बात से वह सहम जाते थे कि उनके बच्चे टेलीविज़न देखकर ही उनसे बेहतर अँग्रेज़ी जान गए थे। फिर भी, टूर के वक़्त यह उनके काम आती थी।

- क्रमशः

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