वर्जित है!

15-01-2020

वर्जित है!

सुनिल यादव 'शाश्वत’ (अंक: 148, जनवरी द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

बंदूकें तो हम ही चलाएँगे,
पर तुम्हारा तोप चलाना वर्जित है।
                महँगी शिक्षा, महँगे संस्थान,
                पढ़े फ़ारसी बेचे तेल,
                सारी व्यस्थायें शिक्षा की,
                स्वयं हो रही फ़ेल,
सर्व शिक्षा का अभियान चलाएँगे,
नैतिकता का पाठ-पठाना वर्जित है।
                व्हाट्सएप, फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम,
                व्यस्त रहे जनता, सरकारी आराम,
                बेरोज़गारी के आलम में,
                इस साज़िश ने दिया रोज़गार,
युवा डिग्री लेकर नाचेंगे?
बिन चुनाव भर्ती निकालना वर्जित है।
                एक सौ दो पायदान पर ठहरे,
                पंद्रह शेष अभी-भी पीछे,
                हरित क्रांति का दृश्य मनोहर,
                ग़रीब अभी भूखे ही सोते,
बेघर फिर सर्दी में नीचे-नीम के काँपेंगे,
दाह करूँ रंगमहलों का, विरोध जताना वर्जित है।
                अरे! कर आह्वान इक समर विशेष,
                निज की ख़ातिर लड़ बदल कर वेश,
                मिटता स्नेह, बढ़ता द्वेष,
                जात-पात का ना मिटे क्लेश,
साज़िशें सफल न हो पाए "शाश्वत",
अपमान तिरंगे का वर्जित है॥

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