क्या है ये???
ये भीगी आँखों में 
मुस्कान दे रहा है...
सुप्त हुए जज़्बात को
उड़ान दे रहा है....
प्रफुल्लित है हृदय 
और वज़ह भी नहीं कोई ...
ये क्या है जो क्षितिज से परे 
आवाज़ दे रहा है।

 

क्या है ये???
ये सागर की लहरों को 
उनवान दे रहा है ...
ये पौ फटते वक़्त सी 
अज़ान दे रहा है...
जैसे आस-पास बिखरी हो
निर्मल धूप- सी कोई ...
ये क्या है जो खंडहर को 
नव-निर्माण दे रहा है।

 

क्या है ये???
ये अधीर हृदय को मेरे
मुरली तान दे रहा है ....
निष्प्राण हुई मछली में 
फिर प्राण दे रहा है ...
जैसे दूर घाटियों में 
गूँजती हों घंटियाँ....
सब त्याग दो दुविधाएँ
आह्वान दे रहा है।

 

क्या है ये???
ये थरथराती प्रत्यंचा को 
कमान दे रहा है ...
भटके हुए पथिक को राह 
आसान दे रहा है ...
जैसे आ रहें हो झुंड 
बादलों के झूम के...
सूखे सहरा में बारिश का 
सामान दे रहा है।

 

क्या है ये???
क्या अलौकिक प्रकाश पुंज 
प्रभु वरदान है ये???
जो ख़ुद में ख़ुद को पहचानने का
पूत दान दे रहा है 
मेरी हर भटकती भावना को 
शब्द-ज्ञान दे रहा है...
हाँ ये अलौकिक प्रकाश पुंज 
प्रभु वरदान दे रहा है ।

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