वन में फूले अमलतास हैं
घर में नागफनी।
हम निर्गंध पत्र-पुष्पों को
दे सम्मान रहे
पाटल के जीवन्त परस से
पर अनजान रहे
सुधा कलष लुढ़का कर मरु में
करते आगजनी।
तन मन धन से रहे पूजते
सत्ता, सिंहासन
हर भावुक संदर्भ यहाँ पर
ढोता निर्वासन
राजद्वार तक जो पहुँचा दे
वह ही राह चुनी।
टूट गया रिश्ता अपने से
इतने सभ्य हुए
औरों को क्या दे पाते, कब-
खुद को लभ्य हुए
दृष्टि रही जो अमृत- वर्षिणी
जलता दाह बनी।