वहम

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 175, फरवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

ख़ुद के अहम
और वहम में
ख़ुद को ख़ुदा
माना छोड़ दो।
 
सब की तक़दीरे
वो ऊपर वाला ही लिखता है
ख़ुद को शातिर
समझना छोड़ दो।
 
मैं रहूँ न रहूँ
इस धरा में
वो सदा ही
वास करता रहेगा
हर जगह में।
 
मैं मिट्टी में मिट्टी
हो जाऊँगा,
ये कोई नई बात नहीं
मगर वो ख़ुदा
मिट्टी से फिर मुझे बनाएगा
बस ये बात याद रखना।

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