वह शर्त

बी एम नंदवाना (अंक: 149, फरवरी प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

द बेट : एंटॉन चेख़ोव (मूल लेखक)
अनुवादक : बी एम नंदवाना


I

वह पतझड़ की एक  रात थी। बूढा बैंकर अपनी स्टडी में तेज़ी से इधर-उधर घूम रहा था और  आज से ठीक पंद्रह वर्ष पहले दी गयी एक दावत को याद कर रहा था। उस दावत में शहर के गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे। उस दावत में अन्य विषयों के साथ-साथ मृत्युदंड पर भी गरमागरम बहस हुई थी। अधिकांश मेहमान, जिनमें बुद्धिजीवी और पत्रकार भी थे, मृत्युदंड पर अपनी असहमति जता रहे थे। उनका मानना था कि सज़ा के रूप में मृत्यु-दण्ड एक क्रिश्चियन राज्य के लिए अनुपयुक्त और अनैतिक था। उनमें से कुछ का विचार था कि मृत्यु-दंड को आजीवन-कारावास से बदल देना चाहिए।

“मैं आपसे सहमत नहीं हूँ,” मेज़बान ने कहा, “हालाँकि मेरा अनुभव न तो मृत्यु-दंड का है और न ही आजीवन कारावास का। लेकिन अगर हम तार्किक दृष्टि से देखें, तो मृत्यु-दंड कारावास की तुलना में अधिक न्यायसंगत एवं   मानवीय है। फाँसी व्यक्ति की जान तुरंत ले लेती है, आजीवन-कारावास उसे किश्तों में मारता है। अधिक मानवीय जल्लाद कौन है, वह जो आपका जीवन कुछ ही क्षणों में समाप्त कर देता है या वो जो वर्षों तक आपके जीवन का कुछ हिस्सा लगातार निकालता रहता है?”

“दोनों ही समानरूप से अनैतिक हैं,”  किसी दूसरे मेहमान ने अपना मत्त व्यक्त किया, “क्योंकि दोनों का उद्देश्य एक ही है - जीवन को समाप्त कर देना। राजसत्ता कोई भगवान् नहीं है। उसे यह अधिकार क़तई नहीं है कि वह उस वस्तु को छीन ले, जिसे वह चाहे भी तो वापस नहीं दे सकती”

उस मंडली में एक अधिवक्ता भी था, क़रीब पच्चीस वर्ष का युवक। जब उससे उसकी राय के बारे में पूछा गया, उसने कहा: 
 “मृत्यु-दंड और आजीवन-कारावास समानरूप से अनैतिक हैं; परन्तु अगर मुझे किसी एक को चुनने के लिए कहा जाए तो निश्चिरूप से मैं आजीवन-कारावास को चुनूँगा। कैसे भी हालात में जीवित रहना, जीवित नहीं रहने से बेहतर है।”

इस तरह एक रोचक परिचर्चा प्रारभ हो गयी थी। बैंकर ने, जो उस समय नवयुवक था, और कुछ असहिष्णु भी, अचानक आपा खोते हुए टेबिल पर मुक्का मारा और अधिवक्ता की ओर पलट कर चिल्लाया:

“यह झूठ है, मैं तुमसे बीस लाख की शर्त लगाता हूँ, तुम जेल की कोठरी में पाँच वर्ष भी नहीं रह पाओगे।”

“अगर तुम वास्तव में गंभीर हो,” अधिवक्ता ने उत्तर दिया, “तो मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है, और हाँ मैं पाँच नहीं, पंद्रह वर्ष तक रहूँगा ।”

“पंद्रह! मंजूर है।” बैंकर चिल्लाया, “महानुभावों, मैं बीस लाख का दाँव लगाता हूँ।”

“मुझे मंजूर है। तुम बीस लाख का दाँव लगाते हो, और मैं अपनी आज़ादी का,”  अधिवक्ता ने कहा।

इस तरह एक बेहूदी और हास्यास्पद शर्त लग गयी। बैंकर के पास उन दिनों काफ़ी धन-दौलत थी, बिगड़ैल और तुनक-मिज़ाजी, वह उसी के उन्माद में डूबा हुआ था। रात्रि-भोजन के समय उसने अधिवक्ता से मज़ाक में कहा:
“जवान घोड़े, इससे पहले की बहुत देर हो जाए, ज़रा होश में आओ। मेरे लिए बीस लाख के रक़म कुछ नहीं हैं, लेकिन तुम अपने जीवन के तीन या चार बेहतरीन वर्ष खो दोगे। तीन या चार वर्ष मैं इसलिए कहा रहा हूँ कि इससे अधिक तुम किसी भी हालत में नहीं रह पाओगे। मेरे अभागे मित्र, यह मत भूलो कि स्वौच्छिक-कारावास बाध्य-कारावास से अधिक दुखदायी है। तुम्हारे मन में उठता विचार कि तुम जब चाहो काल-कोठरी से मुक्त हो सकते हो,  तुम्हारे समस्त जीवन में विष घोल देगा।  मुझे तुम पर तरस आता है।”

और अब स्टडी में तेज़ी से घूमते हुए, बैंकर को यह सब याद आया और उसने स्वयं से पूछा:

“मैंने यह शर्त क्यों लगाई? इससे क्या हासिल हुआ? अधिवक्ता अपने जीवन के बेशक़ीमती पंद्रह वर्ष खो रहा है, और इधर मैं बीस लाख गँवा रहा हूँ। क्या यह लोगों को विश्वास दिला पायेगा कि मृत्यु-दंड आजीवन-कारावास से अच्छा है या बुरा? नहीं, नहीं! यह सब बकवास है। एक खाते-पीते अभिमानी व्यक्ति की सनक और एक अधिवक्ता की निरी धन-लोलुपता के सिवाय कुछ नहीं।”

उसे फिर याद किया जो उस शाम दावत के बाद हुआ था। यह तय हुआ था कि अधिवक्ता को कारावास, बैंकर के बग़ीचे के पार्श्वभाग में, कड़े से कड़े निरीक्षण के तहत भोगना होगा। यह सहमति बनी थी कि कारावास के दौरान वह तय सीमा को लाँघने, लोगों को देखने, मानव-ध्वनियों को सुनने और पत्र-पत्रिकाओं-अख़बारों को प्राप्त करने के अधिकार से वंचित रहेगा। हाँ, उसे वाद्य-यन्त्र रखने, पुस्तकें पढ़ने, पत्र लिखने, मदिरा व तंबाकू के सेवन की अनुमति थी। अनुबंध के अनुसार वह बाहरी-संसार से संपर्क बनाए रख सकता था, लेकिन मौन रहते हुए, एक खिड़की के ज़रिये जो ख़ासतौर पर इस प्रयोजन के लिए बनाई गयी थी। खिड़की से एक नोट भेज कर, वह आवश्यकता की सभी वस्तुएँ, पुस्तकें, संगीत के यन्त्र, मदिरा आदि प्राप्त कर सकता था। अनुबंध को बहुत ही बारीक़ी से तैयार किया गया था, जिसने कारावास को पूरी तरह से एकाकी बना दिया था और अधिवक्ता को ठीक पंद्रह वर्ष - नवम्बर 14, 1870 के बारह बजे, से नवम्बर 14, 1885 में बारह बजे तक - के लिए बाँध दिया था। अनुबंध की शर्तों को भंग करने का उसका कोई भी प्रयास, उसका समय से दो मिनट पहले बाहर निकलना भी बैंकर को उसे बीस लाख देने की से बाध्यता से मुक्त कर सकता था। 

कारावास के पहले वर्ष में, उसके लिखे छोटे-छोटे नोट्स से जो निष्कर्ष निकला, अधिवक्ता एकाकीपन और उबाऊपन से भयंकर रूप से पीड़ित रहा। बग़ीचे के पार्श्व-भाग से दिन-रात पियानो की आवाज़ आतीं। मदिरा और तंबाकू की उसने हाथ नहीं लगाया। “मदिरा,” उसके लिखा, “वासनाओं को भड़काती है, और वासनाएँ एक क़ैदी की प्रमुख शत्रु हैं, साथ ही, अच्छी मदिरा अकेले पीने से अधिक उबाऊ कोई और चीज़ नहीं है,” और तंबाकू उसके कमरे की दूषित करती है। पहले वर्ष में अधिवक्ता के पास हलकी-फुलकी क़िस्म की पुस्तकें भेजी गयी; पेचीदा प्रेम-संबंधों के उपन्यास, अपराध व कल्पनालोक की कहानियाँ, और हास्य-नाटक इत्यादि।

दूसरे वर्ष में पियानो के स्वर नहीं सुनाई दिए। अधिवक्ता ने केवल क्लासिक्स की माँग की। पाँचवें वर्ष में संगीत के स्वर फिर से सुनाई दिए और क़ैदी ने मदिरा की माँग की। उस पर नज़र रखने वालों ने बताया कि उस वर्ष वह केवल खाता रहा, पीता रहा और बिस्तर पर लेटा रहा। वह अक्सर उबासी लेता और अपने आप पर झल्लाता रहता। पुस्तकें उसने नहीं पढ़ी। रात को कभी-कभी वह लिखने ज़रूर बैठ जाता। वह लंबे समय तक लिखता और सुबह सब कुछ फाड़ देता। एक-दो बार उसे रोते हुए भी देखा गया। 

छठा वर्ष की दूसरी छहमाही में क़ैदी ने बहुत ही उत्साह के साथ विभिन्न भाषाओं का, दर्शनशास्त्र और इतिहास का अध्ययन प्रारम्भ किया। इन विषयों पर गहन अध्ययन की उसकी लालसा के चलते बैंकर को पर्याप्त पुस्तकें जुटाना भी मुश्किल हो गया। चार वर्षों की समयावधि में, उसकी माँग पर क़रीब छह सौ जिल्दों को ख़रीदा गया। उसके इस जुनून की समाप्ति के साथ ही बैंकर को क़ैदी से यह पत्र प्राप्त हुआ: “मेरे प्रिय, जेलर, मैं इन पंक्तियों को छह भाषाओं में लिख रहा हूँ। उन्हें विशेषज्ञों को दिखाना, वे उन्हें पढ़ें, अगर उन्हें एक भी ग़लती नहीं मिलती है, तो मैं  तुमसे विनती करता हूँ, तुम बग़ीचे में बन्दूक से गोली चलाने का आदेश देना। गोली की आवाज़ से मैं समझ जाऊँगा कि मेरे प्रयास व्यर्थ नहीं गए हैं। सभी युगों और देशों की प्रतिभाएँ अलग-अलग भाषाओं में बोलती हैं, परन्तु उन सभी के भीतर एक-सी ज्योति प्रज्वलित होती है। ओह! काश! तुम मेरे परमानंद को जान पाते कि अब मैं उन्हें समझ सकता हूँ!” क़ैदी की माँग पूरी हुई। बैंकर के आदेश पर बग़ीचे में दो गोलियाँ दागी गईं।

दसवें वर्ष के पश्चात, अधिवक्ता अचल-स्थिर अवस्था में मेज़ के सामने बैठ कर केवल ‘न्यू टेस्टामेंट’ को पढ़ता रहा। बैंकर को यह देखकर बहुत ही आश्चर्य हुआ कि जिस व्यक्ति ने चार वर्षों में छह सौ से अधिक बहुश्रुत ग्रंथों में प्रवीणता हासिल करली थी, उसे लगभग एक वर्ष का समय केवल एक पुस्तक पढ़ने में लगा, जो समझने में आसान थी, और मोटी भी नहीं थी। बाद में ‘न्यू टेस्टामेंट’ का स्थान धर्मों के इतिहास और धर्मशास्त्र ने ले लिया।

अंतिम दो वर्षों के उसके कारावास में क़ैदी ने असाधारण मात्रा में अध्ययन किया, लेकिन बहुत ही अव्यवस्थित रूप   से। कभी वह प्राकृत विज्ञान का अध्ययन करता, तो कभी बायरन अथवा शेक्सपियर को पढ़ता। उसके नोट्स आते रहते, जिनमें एक ही साथ रसायनशास्त्र की पुस्तक, चिकित्सा-पद्धति की पाठ्य-पुस्तक, उपन्यास, और कुछ दर्शन या धर्मशास्त्र पर समीक्षात्मक पुस्तकों की माँग होती। उसने इस तरह से अध्ययन किया जैसे वह टूटे हुए जहाज़ के खण्डों के साथ समुद्र में तैर रहा था, और अपनी जीवन-रक्षा की अदम्य इच्छा से प्रेरित एक के बाद दूसरा खंड व्यग्रता से पकड़ रहा था। 

II

बूढ़े बैंकर ने यह सब याद किया, और विचार किया:

“कल बारह बजे उसे अपनी आज़ादी मिल जायेगी। अनुबंध के अनुसार, मुझे उसे बीस लाख देने पड़ेंगे। अगर मैं रक़म देता हूँ, तो मेरा सब कुछ समाप्त समझो। मैं हमेशा के लिए तबाह हो जाऊँगा...”

पंद्रह वर्ष पहले उसके पास करोड़ों की संपत्ति थी, परन्तु आज उसे अपने से पूछने में भी डर लगता है कि उसके पास अधिक क्या है, पैसा अथवा कर्ज़। स्टॉक-मार्केट पर जुआ, जोख़िमभरी सट्टेबाज़ी, और लापरवाही ने, जिनसे  वह इस उम्र में भी छुटकारा नहीं पा सका था, उसके व्यवसाय को धीरे-धीरे चौपट कर दिया था; व्यापार-जगत का वह साहसी उद्यमी, आत्मविश्वास से भरा हुआ स्वाभिमानी व्यक्ति, एक साधारण-सा बैंकर बन कर रह गया था – बाज़ार के हर उतार-चढ़ाव पर काँपता हुआ।

“वह अभिशप्त शर्त,” बूढ़ा व्यक्ति बुदबुदाया, हताशा में अपने माथे को जकड़ते हुए... “वह व्यक्ति मर क्यों नहीं गया? वह केवल चालीस साल का है। वह मेरी दमड़ी तक ले लेगा, शादी करेगा, जीवन का लुत्फ़ उठाएगा,  एक्सचेंज पर सट्टा लगाएगा और मैं एक ईर्ष्यालु भिखारी की तरह उसे देखूँगा और उसके मुँह से हमेशा इन्हीं शब्दों को सुनूंगा: ‘मेरे जीवन की तमाम ख़ुशियों के लिए मैं तुम्हारा कृतज्ञ हूँ। मुझे अपनी सहायता करने दो।’ नहीं, नहीं! यह असहनीय है! दिवालियेपन और कलंकित होने से बचने का एक मात्र उपाय – है कि उस व्यक्ति को मरना होगा।”

घड़ी ने अभी तीन घंटे बजाये थे। बैंकर सुन रहा था। मकान में सभी सो रहे थे, खिड़की के बाहर केवल बर्फ़ से ढके पेड़ों के रिरियाने की आवाज़ आ रही थी। चुपचाप, बिना कोई आवाज़ किये, उसने तिजोरी में से उस दरवाज़े की चाबी निकाली जो पिछले पंद्रह वर्षों से नहीं खुला था, अपना ओवरकोट पहना, और मकान से बाहर निकल गया। बग़ीचे में ठण्डक और अन्धेरा था। बारिश हो रही थी। सर्द, कँपकँपाने वाली तीखी हवा बग़ीचे में सनसना रही थी और वृक्षों को विचलित कर रही थी। हालाँकि उसने आँखों पर ज़ोर डाला, लेकिन बैंकर न ग्राउंड, न सफ़ेद मूर्तियाँ, न बग़ीचे का पार्श्वभाग, न वृक्षों को देख पाया। बग़ीचे के पार्श्वभाग में पहुँच कर उसने दो बार वॉचमैन को आवाज़ दी। उधर से कोई जवाब नहीं आया। अवश्य ही, वॉचमैन ख़राब मौसम से बचने के लिए रसोईघर या पौधघर में कहीं सोया हुआ था।

“अगर मुझे में अपने लक्ष्य तक पहुँचने का साहस है,” बूढ़े व्यक्ति ने सोचा, “तो सबसे पहले वॉचमैन ही संदेह के घेरे में आयेगा।”

अँधेरे में उसने सीढ़ियों और दरवाज़े को टटोला और बग़ीचे के पार्श्वभाग में दाख़िल हो गया। फिर, धीरे-धीरे रास्ता बनाते हुए संकड़े गलियारे तक आया और माचिस जलाई। वहाँ कोई प्राणी नहीं था। किसी का पलँग, बिना कवर के वहाँ पड़ा हुआ था, और कोने में एक लोहे का स्टोव, अँधरे में धुँधला-सा दिखाई देता हुआ। उस दरवाज़े की सील जो क़ैदी के कमरे की ओर खुलता था, साबुत थीं।

जब दियासलाई बुझ गयी, बूढ़े व्यक्ति ने, उत्तेजना से काँपते हुए, उस छोटी सी खिड़की में से झाँक कर देखा।
क़ैदी के कमरे में एक मोमबत्ती मंद रूप से जल रही थी। क़ैदी ख़ुद मेज़ के पास बैठा हुआ था। केवल उसकी पीठ, उसके सिर के बाल और उसके हाथ दिखाई दे रहे थे। खुली पुस्तकें मेज़, दो कुर्सियों पर, और मेज़ के पास कारपेट पर बिखरी हुई थीं।

पाँच मिनट गुज़र गए और क़ैदी एक बार भी नही  हिला। पंद्रह वर्षों के कारावास ने उसे स्थिर बैठना सिखा दिया था। बैंकर ने अपनी उँगली से खिड़की को धीमे से थपथपाया, लेकिन क़ैदी में कोई हलचल नहीं हुई। तब बैंकर ने सावधानी से दरवाज़े पर लगी सील को तोड़ा और ताले में चाबी लगाई। जंग लगे ताले से एक कर्कश आवाज़ आई और दरवाज़ा चरमराया। बैंकर को एक आकस्मिक चीख और क़दमों को आवाज की प्रत्याशा थी। तीन मिनट बीत गए और लेकिन अन्दर पहले जैसी शान्ति बनी हुई थी। उसने अन्दर जाने का मानस बनाया। 

मेज़  के सामने एक व्यक्ति बैठा हुआ था, एक साधारण मानव से भिन्न। वह एक कंकाल था, कसी-खिंची चमड़ी, औरतों की तरह लम्बे घुँघराले बाल, और झबरी दाढ़ी। उसके चेहरे का रंग पीला था, मिट्टी का शेड लिए हुए; गाल पिचक गए थे, पीठ लम्बी और सिकुड़ी हुई, और वह हाथ जिस पर उसने अपना झबरा माथा झुका रखा था, इतना पतला-दुबला था कि उसको देखना बहुत  ही कष्टदायक था। उसके बाल सफ़ेद हो गए थे, और उसके जराग्रस्त क्षीण चेहरे को देखकर लगता ही नहीं था की वह केवल चालीस वर्ष का था। वहाँ मेज़ पर, उसके झुके हुए सिर के सामने, एक काग़ज़ की शीट पड़ी थी, जिस पर छोटे अक्षरों में कुछ लिखा हुआ था। 

“बेचारी दुष्टात्मा,” बैंकर ने सोचा, “वह नींद में हैं और शायद सपनों में लाखों में खेल रहा है। मुझे केवल इस अधमरी-सी वस्तु को उठाना है और उसे बिस्तर पर पटक देना है, और तकिये से एक क्षण के लिए उसका गला दबा देना है, और किसी भी तरह की जाँच-पड़ताल, इस अस्वाभाविक मृत्यु का सुराग नहीं लगा पाएगी। लेकिन, पहले पढ़ लूँ कि उसने यहाँ क्या लिखा है।”

बैंकर ने मेज़ से शीट उठाई और पढ़ा:

“कल आधी रात को बारह बजे, मुझे मेरी आज़ादी मिलेगी और लोगों से मिलने-झुलने का अधिकार। लेकिन इससे पहले कि मैं इस कमरे से बाहर निकलकर सूर्य को देखूँ, मुझे लगता है कि यह ज़रूरी है मैं आपसे कुछ कहूँ।  पवित्र अंतर्मन से और ईश्वर के समक्ष, जिसकी दृष्टि मुझ पर है, मैं आपके सामने घोषणा करता हूँ कि आज़ादी, जीवन, स्वास्थ्य और वे सभी जिन्हें आपके महान ग्रन्थ संसार की सुखकर वस्तुएँ मानते हैं, मैं उन्हें तुच्छ मान कर उनका तिरस्कार करता हूँ।

“पंद्रह वर्षों तक, मैंने बड़ी लगन और मेहनत के साथ सांसारिक जीवन का अध्ययन किया है। यह सत्य है कि इन पंद्रह वर्षों में मैंने न संसार को देखा और न ही लोगों को। परन्तु आपकी पुस्तकों में डूब कर मैंने सुगन्धित मदिरा का सेवन किया, गीत गाये, जंगलों में हिरण व जंगली-सूअर का शिकार किया, महिलाओं से प्रेम किया…. और, आपके कवियों की प्रतिभा के मन्त्र-मोह से सृजित सुन्दर महिलाएँ, अलौकिक बादलों की तरह, रात को मेरे पास आतीं और मुझे अद्भुत गाथाएँ सुनातीं, जो मुझे मदहोश कर देतीं। आपकी पुस्तकों के ज़रिये ही मैं एल्ब्रुज और माउंट ब्लांक की चोटियों पर पहुँचा और वहाँ से मैं सूरज को प्रातःकाल में उदय होते और सायंकाल में आकाश, समुद्र और पर्वत-श्रेणियों पर सुनहरे नील-लोहित रंग की छटा बिखराते देखा। उन चोटियों से मैंने मेरे ऊपर बादलों को चीर कर बिजलियाँ चमकती देखी; मैंने हरे-भरे जंगलों, खेतों, नदियों, झीलों, शहरों को देखा; मैंने साइरेन की आवाज़ें और पान देवता का बाँसुरी वादन सुना; मैंने उन दुष्टात्माओं के पंखों को भी छुआ, जो मेरे पास उड़ती हुई आयीं थी, भगवान् को बुरा-भला कहने. . . आपके ग्रंथों से ही मैंने स्वयं को अथाह रसातल में डाला, चमत्कार किए, शहरों को जला कर धाराशाही किया, नए धर्मों का प्रचार-प्रसार किया, समस्त देशों को परास्त कर विजय प्राप्त की…

“आपके ग्रंथों ने मुझे बुद्धिमता प्रदान की। सदियों से निर्मित वह पूरी अथक मानवी-विचार शृंखला मेरी खोपड़ी के छोटे से पिंड में समा गयी है। मैं जानता हूँ कि मैं आप सब से ज़्यादा समझदार हूँ।

“और मैं आपके ग्रंथों का तिरस्कार करता हूँ, सारे सांसारिक सुखों और बुद्धिमता का तिरस्कार करता हूँ। मृगजल की तरह सब कुछ असार, निर्बल, काल्पनिक और भ्रामक है। आप कितने ही अभिमानी और बुद्धिमान और सुन्दर क्यों न हों, मृत्यु आपको पृथ्वी की सतह से पोंछ देगी; और आपकी संतानें, आपका इतिहास, और आपके प्रतिभा-संपन्न व्यक्तियों की अनश्वरता, इस भूमंडल के साथ-साथ भस्म हो जायेगी।

“आप पागल हैं, और ग़लत राह पर हैं, आप असत्य को सत्य और कुरूपता को सुन्दरता समझते हैं। आप अचम्भित हो जायेंगे, अगर अकस्मात् सेब और नारंगी के वृक्ष फलों के बजाय मेंढक और छिपकलियाँ देने लगे और अगर गुलाब के फूल पसीने से तर-बतर घोड़े की गंध देने लगे। इसी प्रकार मैं भी आप पर अचम्भित हूँ, जिन्होंने स्वर्ग के बदले पृथ्वी लेकर, घाटे का सौदा किया है। मैं आप को जानना-समझना नहीं चाहता हूँ।

“कि जिसके साथ आप जी रहे हैं, उसके प्रति मेरी अवज्ञा को प्रकट करता हूँ, मैं उस बीस लाख की रक़म पर अपना दावा छोड़ता हूँ, जिसका कभी मैंने स्वर्ग के रूप में सपना देखा था, और जिसका अब मैं तिरस्कार करता हूँ। कि उस रक़म पर मेरे अधिकार से मुझे वंचित कर दिया जाए, मैं निर्धारित अवधि से पाँच मिनट पहले यहाँ से बाहर आ जाऊँगा, और इस तरह मैं समझौते का उलंघ्घन करूँगा।”

बैंकर ने पढ़ने के बाद शीट मेज़ पर रख दी, उस विलक्षण व्यक्ति का माथा चूमा, और रोने लगा। वह पार्श्वभाग से बाहर गया। आज से पहले उसे स्वयं पर इतनी ग्लानि कभी नहीं हुई थी, उस समय भी नहीं जब उसे स्टॉक मार्किट में भयंकर नुक़सान हुआ था। घर आकर, वह अपने बिस्तर पर लेट गया, परन्तु व्याकुलता और आँसुओं ने उसे देर तक सोने नहीं दिया...।

अगली सुबह बेचारा वॉचमैन भागता हुआ उसके पास आया और उसे बताया कि उन्होंने उस आदमी को जो पार्श्वभाग में रहता था खिड़की से चढ़कर बग़ीचे में जाते देखा था। वह गेट तक गया और फिर ओझल हो गया। बैंकर तुरंत नौकरों के साथ पार्श्वभाग में गया और अपने क़ैदी के भाग निकलने की तसदीक़ की। अनावश्यक अफ़वाहों से बचने के लिए उसने विरक्त भाव से उस शीट को मेज़ से उठा लिया और, घर लौटने के पर, उसे अपनी तिजोरी में रख कर ताला लगा दिया। 
 

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