वह शहर

प्रवीण शर्मा (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

वह शहर कोई भी हो सकता है
वह जगह कहीं भी 
प्लेटफ़ार्म पर 
चलने को तैयार खड़ी
गाड़ी कहीं भी जा सकती थी—
हर तरफ़ तो एक शहर था 
मैं किसी भी शहर से 
कहीं भी जाने वाली 
कोई भी गाड़ी पकड़ सकता था 
और अपनी मनचाही जगह पर 
किसी भी वक़्त 
उतर सकता था 
सामने वाले मोड़ 
से थोड़ी दूर जाकर 
आगे की ओर निकला हुआ 
जो एक पीला सा मकान दिखायी दे रहा है-
या सड़क पार करके 
एक पतली सी गली 
जहाँ उत्तर की ओर मुड़ी है 
उससे ज़रा दूर 
भूरे रंग के घर के सामने 
खड़ा होकर मैं 
किसी भी खिड़की से भीतर झाँक सकता था 
कोई भी दरवाज़ा 
खटखटा सकता था 
बिना पूछे अन्दर जा सकता था—
मुझे लौटते पाँव 
वापिस भी तो आना था—
विपरीत दिशाओं को 
जाते हुए लोग 
क्या एक ही जगह जा रहे थे?
या एक साथ इकट्ठे होकर 
इसी ओर आ रहे थे! 
वह जगह कोई भी हो सकती थी 
वह शहर कहीं भी 
 

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