वह (डॉ. आरती स्मित)

15-06-2020

वह (डॉ. आरती स्मित)

डॉ. आरती स्मित (अंक: 158, जून द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

जब भी अवसर पाती है
वह बाँहें फैलाती है
भर लेती हैं अनंतता 
आग़ोश में
घुल जाती हैं असीम में
समस्त राग-रंगों समेत
और
छिटक आती हैं इंद्रधनुषी आयाम लिए
धरती पर
प्रकृति बनकर!


कभी  लतिका तो कभी 
बनबेल-सी सरसराती 
बढ़ जाती है बिना खाद-पानी के


कभी झील तो कभी नदी-सी
खिलखिलाती 
शिलाओं पर विजय पाती
बढ़ती जाती है


यह बढ़त यह विस्तार
असीम में घुलकर असीम हो जाने 
और 
समो लेने अनंतता को
और रच देने को संसार
वह अवतरित है
असंख्य योनियों में 
स्त्री बनकर!

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