मैंने तो आश्वासन दिया था
कोई वादा थोड़े ही किया था
और वैसे भी वो दिन
तुमसे कुछ लेने के दिन थे
वोट तुमने अपनी मर्ज़ी से दी थी
मैंने कोई ज़बर्दस्ती नहीं की थी
आज मैं कुर्सीदार हूँ
और तुम मुझसे नाराज़ हो
तो मैं क्या करूँ
तेरी ज़रूरतें देखूँ
या अपना घर भरूँ
नाराज़ होना अपने घर में
दो रोटी ज़्यादा खाना
मगर मैं तो पहले
अपना घर भरूँगा
जिसे तुम्हारी और उनकी विनती में
मैंने ख़ाली कर लिया था
कल फिर तुम्हारी मर्ज़ी है
वोट देना या न देना
आज तो मैं हँसकर जिऊँगा
खुलकर पिऊँगा
जिस ज़िंदगी का मैंने
वर्षों इंतज़ार किया था