उम्मीद

नीतू झा (अंक: 187, अगस्त द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

हमें उम्मीद है नदियों से 
नदियों को उम्मीद है पत्थरों से 
वही पत्थर जिससे हमें उम्मीद नहीं
  
उम्मीद बनाए रखो
ये उम्मीद ही है जो 
ज़िंदा रखती ज़िंदगी को
उम्मीद का मर जाना 
संसार का मिट जाना है
  
जब उम्मीद नदी से होती है 
नदी माँ बन जाती है
जब उम्मीद पहाड़ से होती है 
पहाड़ गोवर्धन बन जाता है
उम्मीद जब सागर से होती है तो 
वो दरियाओं का आसरा बन जाता है
जब उम्मीद पत्थर से होती है
पत्थर सेतु बन जाता  है
  
"वैसे ही जब उम्मीद मनुष्य को 
मनुष्य से हो
तब मनुष्य को प्रेम का सागर बन जाना चाहिए"

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