उल्फ़त में बग़ावत की अदा आ के रहेगी

01-09-2019

उल्फ़त में बग़ावत की अदा आ के रहेगी

बृज राज किशोर 'राहगीर'

उल्फ़त में बग़ावत की अदा आ के रहेगी।
रस्में  ये ज़माने  की  बदलवा  के  रहेगी।

 

चाहा तो  बहुत हमने इसे बाँध के रख लें,
नदिया है समन्दर की तरफ़ जा के रहेगी।


ये जान लो क़ुदरत के निज़ामों की बदौलत,
तितली  तो  किसी  फूल पे मँडरा के रहेगी।

 

चुप्पी  ने   तो  होंठों  में   कई  राज़  समेटे,
आँखों की नमी सच की सदा ला के रहेगी।

 

सच मानिए ये आज भी दुश्मन है दिलों की,
दुनिया  है  मुहब्बत  पे सितम  ढा के रहेगी।

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