कही संतों की तू, अरे! मान सच ले।
महाठगनी जगन्माया से बच ले॥
नहीं भरमा स्वयं को और इसमें।
जतन ऐसा कोई कर मन न मचले॥
हरेक भोला भला मासूम चेहरा।
न जाने कब कुटिलतम चाल रच ले॥
मूँदके आँख मत विश्वासकर तू।
मान वो बात जो सच्ची हो जँच ले॥
नशे में नाचती हर इक जवानी।
कहाँ बिरला बुढ़ापा है? जो नच ले॥
कभी ना भूल क्षण भंगुर है जीवन।
गया हर कर्ण आया जो कवच ले॥