तुम्हारी शख़्सियत के मैं बराबर हो नहीं सकता

15-12-2019

तुम्हारी शख़्सियत के मैं बराबर हो नहीं सकता

बलजीत सिंह 'बेनाम' (अंक: 146, दिसंबर द्वितीय, 2019 में प्रकाशित)

तुम्हारी शख़्सियत के मैं बराबर हो नहीं सकता
ज़ियादा की तमन्ना में हाँ कम भी खो नहीं सकता

 

किसी की आबरू पर गर लगे बदनामी के छीटें
कोई तदबीर कर लो पाक़ दामन हो नहीं सकता

 

उसे मालूम है आँसू अना को ज़ख़्म ही देंगे
बज़ाहिर संगदिल होता है ज़ालिम रो नहीं सकता

 

न दे पाया तुम्हे मैं फूल इसका है गिला लेकिन
तुम्हारी ज़िन्दगी में ख़ार भी तो बो नहीं सकता

 

मोहब्बत की रवायत की ख़राबी या कहो ख़ूबी
निग़ाहें नींद से बोझल हों इंसाँ सो नहीं सकता

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें