तुम्हारी क़सम

30-11-2018

तुम्हारी क़सम

सुभाष चन्द्र लखेड़ा

इसे यूँ ही कल्पना के आधार पर खड़ी ईमारत या किसी भावुक कवि की लिखी इबारत न समझना। सच तो यह है कि तब से लेकर आज तक वह तुम्हें निरंतर याद करता रहा। मुझसे बेहतर इस बात को कोई दूसरा कैसे जान सकता है। वह जब तक ज़िन्दा रहा, यही कहता रहा कि तुम सिर्फ नाम से ही नहीं, सचमुच उसके अरमानों की परी हो; परी इसलिए भी कि जब तुम उसके साथ होती थी, वह अपने आप को आसमान में बिखरे बादलों के साथ देखता था। उसका तन-मन भी बादलों की तरह भीगा रहता था तुम्हारे स्पर्श से। लेकिन फिर एक दिन किसी षडयंत्र के तहत उसे एक क़त्ल के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में पुलिस उसे यातना देती रही। मुझे भी पता है कि इस षडयंत्र के पीछे कौन लोग थे? मैं हिम्मत जुटाकर कुछ करता कि सारा किस्सा ही ख़त्म हो गया। कल रात उसे जान से मार दिया गया क्योंकि आज उसकी पेशी थी। मैंने किसी से सुना है कि तुम्हें यह बताया है कि वह किसी दूसरी लड़की को लेकर फरार हो गया है। खैर जो होना था, सो हो गया। अर्ज बस इतनी है कि हो सके तो कभी अँधेरे में उसके नाम से एक दिया जला देना। हो सकता है उसकी भटकती आत्मा को कुछ सकून मिल सके।

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