तुम्हारा पावरहाउस
गौरव भारतीवो नीम का पेड़ याद है
जिसे हम चुराकर लाए थे
पड़ोसी की बाड़ी से
और लगाया था ज़िद करके
तुमने मेरी बाड़ी में
आज वह बहुत घना हो गया है
बिल्कुल तुम्हारी बालों की माफ़िक
जब भी तुम याद आते हो
बैठ जाता हूँ इसके क़दमों तले
जैसे बैठ जाता था अक्सर
तुम्हारी गोद में ज़ुल्फ़ों के साए तले
तुम तब अक्सर बैठे-बैठे दूब तोड़ने लगते थे
तब मैं नहीं समझ पाता था
लेकिन आज मैं भी जाने अनजाने
ज़मीं पर उगे दूब तोड़ने लगता हूँ
पता है एक बार तो यह नीम सूख ही गया था
लेकिन दादा के नुस्खे ने इसमें जान डाल दी
तब मुझे ऐसा लगा था
मैंने तुम्हें बचा लिया है; रोक लिया है
जाने से कहीं दूर
जैसे रोकता है एक हठी बच्चा अपनी माँ को
आँचल पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से रोकर
लेकिन आज मालूम होता है
कहाँ रोक पाया था तुम्हें
लेकिन क्यूँ रोकता
तुम्हें रोकना तुम्हारी उड़ान को रोकना था
तुम्हारे सपनों संग खेलना था
और वैसे भी मुझे तो सब पसंद था
तुम्हारी हँसी तुम्हारी रुलाई
तुम्हारा गुदगुदाना तुम्हारा दबे पाँव आना
तुम्हारी शरारत तुम्हारी शिकायत
तुम्हारी बदमाशियाँ तुम्हारी नादानियाँ
और सबसे ज़्यादा पसंद था
तुम्हारा उड़ना और तुम्हारे बड़े-बड़े सपने
जिसमें यूँ ही कभी मैं भी शरीक हो जाता था
और पूछ बैठता था कभी-कभी
मैं कहाँ हूँ इन सब में
तुम हँसकर कह देते थे
तुम तो मेरे पावरहाउस हो
आज गर जो तुम लौटो कभी तो
शायद तुम न पहचान पाओ मुझे
और न ही इस नीम को
लेकिन यह नीम तुम्हें पहचान लेगा
क्योंकि जितना मैंने तुम्हे जाना है
उससे कहीं ज़्यादा इसने तुम्हें महसूस किया है
मेरी बातों में मेरी यादों में मेरी आहों में
और मेरे और नीम की गुफ़्तगू में
हमेशा तुम भी तो थे
कभी इत्तेफ़ाक़ से बैठ जाओ इसकी छाँव में
तो यह सब बक देगा
हो सकता है तुम्हें कोसे भी
मगर बुरा मत मानना
और वैसे भी तुम उड़ो
ज़मीं पर मैं हूँ न
तुम्हें सँभालने के लिए; बचाने के लिए
हमेशा की तरह
तुम्हारा पावरहाउस!