तुम प्रिये

01-08-2021

तुम प्रिये

अभिजीत आनंद ’काविश’ (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

भोर की लाली किरण सी तुम प्रिये,
मुस्काते कुमुद की पहली झलक सी तुम प्रिये, 
मन ही मन बस निहारता रहूँ मैं . . .  
 
ओस की बूँदों में नहाई मंजुल छवि सी तुम प्रिये,
सुबह की अधखिली अलसाई कलि सी तुम प्रिये, 
मन ही मन बस बहकता रहूँ मैं . . .  
 
मेरी बगिया की चहकती मधुर कलरव सी तुम प्रिये, 
मन उपवन में बरसती सावन फुहार सी तुम प्रिये, 
मन ही मन भीगकर आह्लादित होता रहूँ मैं . . . 
 
मेरे हिय में पुलकित कोंपल सी तुम प्रिये,
मेरे नयनन में समाई प्रेम मूरत सी तुम प्रिये, 
मन ही मन बस सँवारता रहूँ मैं . . .  
 
मेरी लेखनी से स्फुटित हर शब्द में सिर्फ़ तुम प्रिये, 
मेरे गीत ग़ज़लों में रची बसी सिर्फ़ तुम प्रिये, 
मन ही मन बस गुनगुनाता रहूँ मैं . . .  
 
तुम्हीं प्रेरणा, तुम अभिव्यक्ति मेरा हर उद्‌गार तुम प्रिये, 
मन मंदिर में बस गई हो निर्मल मूरत सी तुम प्रिये, 
मन ही मन तुम्हें पूजता रहूँ मैं . . .  

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