तुम (इन्दिरा वर्मा)
इन्दिरा वर्मातुम मेरी हर कहानी में हो,
हर ज़बानी में हो,
हर हार, हर जीत,
हर दुख, हर सितम में
तुम ही तो हो।
तुम्हारे इर्द-गिर्द
पता नहीं कितनी
बातें बुनी हैं मैंने।
सीधी, उलटी, रंग बिरंगी
धारी वाली, चार खाने वाली
और
जालीदार भी!
तुम्हारे बिना क्या बुनूँ
या तो समझ नहीं पायी
या अच्छा नहीं लगा तो
उधेड़ दिया।
उसमें रंग डालने की कोशिश की तो थी
पर जमा नहीं,
ऐसा लगा कि
भद्दा ही बनेगा और यही हुआ।
उधड़ा पड़ा रहा
फिर तुम्हारे पास बैठ कर ही
दोबारा बनाया,
बस बन गया –
एक सुन्दर नमूना,
मेरी ज़िन्दगी का!