तुम बिन अस्तित्व में
कुमारी अर्चनामैं वहाँ तक आगे
जाना चाहती हूँ
जहाँ से तुम
मुझसे पीछे ना छूटो!
मैं झट से तुम्हारा
हाथ थाम सकूँ
आवश्यकता पड़ने पे!
मैं कुछ तो हूँ
बस तुम ये समझो
तुम्हारे जाने के बाद भी
अस्तित्वहीन नहीं हुई
मैं अपने अस्तत्वि में हूँ
अपने स्त्रोयोचित गुणों को सँभाले!
स्वाभिमान अब भी शेष है मेरा
इसलिए तुम्हारे पीछे-पीछे भागने के बजाय
मैंने ख़ुद की स्वंत्रत पहचान बनायी
ना तुम्हें हराना चाहती
ना तुम्हें जीतना चाहती
बस बराबरी चाहती हूँ
परस्पर संबंधों की!