तुम आये (शाश्वती पंडा)

15-10-2020

तुम आये (शाश्वती पंडा)

शाश्वती पंडा (अंक: 167, अक्टूबर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

तुम आये,
लेकिन बहुत देर कर दी
आना ही था तो थोड़ा पहले  ही आ जाते . . .?
मन आंगन के पात झड़ने से पहले  आ जाते . . .?
दिल के सारे अरमानों का गला घुटने से पहले आते!
फागुन का भादों को छूने  से पहले,
परिणय  के रंगों को आँकने से पहले,
गोधूलि का झुरमुट से मिलने से पहले ही
आ जाते . . .!
– पर . . . तुम आये
बहुत देर कर दी . . . आने में
हाँ आये  यह सच है . . . दिल के
सारे सपनों का लेकिन टूटने के बाद,
जीवन की सारी आशा आकांक्षाओं के 
देहांत होने के बाद . . .
हृदय के निःसंगता में,
अँधेरी दीवारों पर  अतीत के 
अनभूले पन्नों को उलटकर टटोलते  हुए,
और जीवन के  अंतिम प्रहर में,
तुम आये . . . ॥
 
           फिर भी बहुत देर कर दी . . .
                            
          तुम आये अपने हृदय में  प्यार का 
                                  बौछार लेकर,
   सप्त रंगी इन्द्रधनुषी रंगों को लेकर॥
                   पर फिर भी,
            तुम आये . . . अमावस की
            काली अँधियारी छा जाने के बाद,
           अपने प्रेम की बहार में मुझे भिगोने 
                                              के लिये॥
               लेकिन . . . लेकिन 
          सब कुछ उलट-पुलट होने के बाद
            मगर . . . हाँ तुम आये . . .
       यह सच है  . . . पर फिर भी बहुत।
               बहुत देर कर दी . . .!

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