तू न अमृत का पियाला दे हमें
चाँद 'शेरी'तू न अमृत का पियाला दे हमें
सिर्फ़ रोटी का निवाला दे हमें।
जिसको पढ़ कर एक हों अहले-वतन
वो मुहब्बत का रिसाला दे हमें।
ढूँढ लें ज़ुल्मत में मंज़िल के निशाँ
या ख़ुदा! इतना उजाला दे हमें।
सीख पाएँ हम जहाँ इन्सानियत
कोई ऐसी पाठशाला दे हमें।
एक दर हों एक दिन जिन का आस्ताँ
ऐसी मस्जिद दे शिवाला दे हमें।