सुबह-सुबह घूमने जाने वाले व्यक्ति चौराहे पर भीड़ लगाकर खड़े हो गए थे। कल अमावस्या की रात थी और इसका साक्षी था चौराहे पर पड़ा बड़ा-सा कुम्हड़े का फल.. जिसपर ढेर - सा सिन्दूर लगा हुआ था, उसके अंदर नींबू काटकर रखा गया था, अंदर ही कुछ अभिमंत्रित लौंग भी रखे हुए थे।
स्पष्ट था की अमावस्या की रात को अपने घर की अलाय-बलाय उतारने के लिए किसी ने ज़बरदस्त टोटका किया था और उसका उतारा चौराहे पर लाकर पटक दिया था।

लोग खड़े-खड़े खुसुर-फुसुर कर रहे थे ... रास्ता बुहारने आई जमादारनी भी "ना बाबा ना, मैं बाल-बच्चों वाली हूँ.." कहकर उसे बुहारने से इंकार कर गई।" अभी रास्ते पर चहल-पहल हो जाएगी, बच्चे भी खेलेंगे-कूदेंगे.. यदि किसी ने इसे छू लिया तो?" सभी यहाँ सोचकर उलझन में थे कि एक अधनंगा व्यक्ति भीड़ को चीरकर घुस आया। दो दिन से भूखे उसके शरीर में उस कुम्हड़े को देखते ही फुर्ती आ गई। आँखें चमक उठीं और कोई कुछ समझता, इससे पहले ही उसने झपटकर कुम्हड़ा उठाया, उसपर नींबू निचोड़ा और गपागप खाने लगा... लोगों की आँखें फटी रह गईं ..

उसके पेट की भूख का टोटका अमावस्या के टोटके पर भारी पड़ गया था।

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