तिरंगी कफ़न
हरिपाल सिंह रावत ’पथिक’मेरे रक्त से लहुलुहान था,
विवश, क्षत-विक्षत तन मेरा।
चक्षु-रोशनी और विरह का क्षण,
पर प्रफुल्लित सा था...... यह मन मेरा।
वाम हस्त असतत.... कहीं दूर पड़ा था,
जिससे मैं यह सारी जंग लड़ा था।
दायें हस्त में थामें तिरंगा,
दिख रहा था वतन मेरा।
मेरे रक्त से........
दर्द असहनीय, तृप्त ओष्ठक,
रक्त वारि सा स्रावित पल पल,
असहनीय, दर्द से भरा हुआ था,
धरा से यह आख़िरी मिलन मेरा।
मेरे रक्त से......
भाल तिलमिला रहा था दर्द से,
मिल रहा था वजूद, मेरे वजूद से,
करोड़ों मुस्कानों का कारण था,
तिरंगी.... वह गर्वित कफ़न मेरा।
मेरे रक्त से लहुलुहान था,
विवश, क्षत-विक्षत यह तन मेरा।