थ्रेसर

गोलेन्द्र पटेल (अंक: 179, अप्रैल द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

थ्रेसर में कटा मज़दूर का दायाँ हाथ
देखकर
ट्रैक्टर का मालिक मौन है
और अन्यात्मा दुखी
उसके साथियों की संवेदना समझा रही है
किसान को
कि रक्त तो भूसा सोख गया है
किंतु गेहूँ में हड्डियों के बुरादे और माँस के लोथड़े
साफ़ दिखाई दे रहे हैं
 
कराहता हुआ मन कुछ कहे
तो बुरा मत मानना
बातों के बोझ से दबा दिमाग़
बोलता है / और बोल रहा है
न तर्क, न तत्थ
सिर्फ़ भावना है
दो के संवादों के बीच का सेतु
सत्य के सागर में
नौकाविहार करना कठिन है
किंतु हम कर रहे हैं
थ्रेसर पर पुनः चढ़ कर —
 
बुज़ुर्ग कहते हैं
कि दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है
तो फिर कुछ लोग रोटी से खेलते क्यों हैं
क्या उनके नाम भी रोटी पर लिखे होते हैं
जो हलक़ में उतरने से पहले ही छीन लेते हैं
खेलने के लिए
 
बताओ न दिल्ली के दादा
गेहूँ की कटाई कब दोगे?

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