तेरी चाहत दूरी है

01-11-2020

तेरी चाहत दूरी है

डॉ. संतोष गौड़ 'राष्ट्रप्रेमी' (अंक: 168, नवम्बर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

तेरे बिन, मैं रहा अधूरा, प्रेमी संग तू पूरी है।
संग साथ की चाहत मेरी, तेरी चाहत दूरी है।
 
प्रेम का तूने, राग अलापा।
अकेलापन मुझको है व्यापा।
षडयंत्रों को पूरा करने,
कोर्ट में जाकर, किया स्यापा।
 
प्राणों पर आघात किया, फिर कहती मजबूरी है।
तेरे बिन, मैं रहा अधूरा, प्रेमी संग तू पूरी है॥
 
झूठ और छल करके, रानी।
तूने याद दिला दी, नानी।
मैंने तो विश्वास किया था,
विश्वासघात का, पिलाया पानी।
 
विश्वास कभी, पा न सकेगी, भले कानूनी सूरी है।
तेरे बिन, मैं रहा अधूरा, प्रेमी संग तू पूरी है॥
  
कहीं भी जाकर, अब तू लड़ ले।
किसी के ऊपर, जाकर चढ़ ले।
जीवन में ना, शांति मिलेगी,
कितनी भी, तू जिद पर अड़ ले।
 
तेरी चाहत पूरी हो बस, मेरी रही अधूरी है।
तेरे बिन, मैं रहा अधूरा, प्रेमी संग तू पूरी है।

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