तेरी अदाएँ
महेन्द्र देवांगन माटीकाली काली ज़ुल्फ़ों को क्यूँ,
नागिन सी लहराती हो।
चंचल नयना मस्त अदाएँ,
क्यों हरदम इठलाती हो॥
लाल गुलाबी होंठ शराबी,
देख नशा चढ़ जाता है।
फूलों सी ख़ुशबू को पाकर,
भौंरा गाने गाता है।
कली गुलाब सी कोमल काया,
धूप लगे मुरझाती हो।
चंचल नयना मस्त अदाएँ,
क्यों हरदम इठलाती हो॥
पाँवों की पायल से तेरी,
धुन संगीत निकलता है।
सुन आवाज़ें ताल मारकर,
आशिक़ रोज़ थिरकता है॥
कोयल जैसा कंठ तुम्हारा,
गीत मधुर तुम गाती हो।
चंचल नयना मस्त अदाएँ,
क्यों हरदम इठलाती हो॥