तरक़्क़ी

15-06-2021

तरक़्क़ी

प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

सुधीर के ऑफ़िस की रोज़-रोज़ की पार्टियों से मन पूरी तरह से ऊबने लगा था . . .वही लोग . . .वही हो-हल्ला . . . वही बेतुकी चापलूसी . . . वही साड़ी-ज़ेवर की नुमाइश . . . वही सिगरेट और शराब की बदबू में मिली, झूठ और फ़रेब की दुर्गंध!

 . . .और यह सिलसिला शुरू हुआ, जब से नए एम.डी. मिस्टर मल्होत्रा आए!

एक बार . . .

"तुम्हें ये मिस्टर मल्होत्रा कुछ अजीब नहीं लगते, बड़े भद्दे क़िस्म के मज़ाक करते हैं, नहीं . . .?"

"अरे नहीं प्रिया , ऐसी कोई बात नहीं है, कुछ लोगों की आदत होती है हँसी-मज़ाक करने की . . ."

"अच्छा, शायद मुझे ही . . ." बात आई- गई हो गयी . . .

दूसरी बार . . .

"सुधीर तुमने भी देखा क्या, वो कैसे औरतों को घूर-घूर कर देखते हैं, और ज़रूरत से अधिक ही प्रशंसा करते हैं . . .मुझे तो बहुत अटपटा लगता है . . ."

"मेरी प्रिया है ही इतनी ख़ूबसूरत . . . मेरी सिवा कोई और भी दीवाना हो गया तो इसमें हर्ज़ ही क्या ?"

"उफ्फ! सुधीर तुम बहुत भोले हो . . .पर दुनिया नहीं . . .!"

तीसरी बार . . .

"तुम्हें मज़ा आया होगा पार्टी में, मेरा तो दिल जल रहा है, मन तो किया कि उन्हें करारा जवाब दे दूँ . . . पता है, जब तुम ड्रिंक्स लेने के लिए गए थे तो मुझ पर आँखें गढ़ाकर अजीब लहज़े में बोले, ’भई, कौए की चोंच में अनार की कली है, अपनी अपनी क़िस्मत है’ . . ."

"ओवर रियेक्ट करने की भी हद होती है प्रिया, पता नहीं तुम्हारे दिमाग़ में क्या चलता रहता है . . ."

"थोड़ा दिमाग़ तुम भी चलाओ सुधीर . . ." प्रिया कुढ़ कर रह गयी।

चौथी बार . . .

"मैं आगे से पार्टी में नहीं जाऊँगी . . . ज़बरदस्ती हाथ खींचकर संग नचाने की कोशिश . . . जब मैं मना कर रही हूँ, तो उनकी ज़ुर्रत कैसे हुई ," . . .प्रिया लगभग चिल्ला पड़ी।

"ओहो , तुम्हें भी तिल का ताड़ बनाने की आदत हो गई है . . . हाई सोसाइटी में ये छोटी-मोटी बातें आम होती हैं . . .अब मेरा अच्छा भला मूड मत ख़राब करो . . ."

"सुधीर आप समझ नहीं रहे . . . या फिर . . . समझना नहीं चाह रहे?" 

अगली बार . . .

"अब मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूँगी . . . . हर चीज़ की एक हद होती है . . . . आज तुम विश्वास नहीं करोगे . . . उन्होंने मुझे अकेला पाकर मेरा हाथ चूमने की कोशिश," प्रिय रुआँसी होकर बिलबिला उठी, "और तुम भी उस समय पता नहीं कहाँ चले जाते हो . . .?"

"बन्द करो ये रोज़-रोज़ की बकवास, तुम कोई बच्ची नहीं हो . . . यही प्रॉब्लम है तुम मिडल क्लास की लड़कियों में . . . सतरंगे ख़्वाब तो देखती हो, पर . . . पता है, दूसरी औरतें अपने पति की तरक़्क़ी के लिए क्या कुछ करती हैं . . . और तुम! बस रोज़ एक नया बखेड़ा . . . कुछ पाने के लिए जीवन मे थोड़ा बहुत कोम्प्रोमाईज़ करना पड़ता है . . . बात का बतंगड़ बनाने का शौक़ हो गया है तुम्हें . . .
 . . .और सुनो, ख़बरदार जो तुमने ये सब अपने घरवालों को बताया . . ."

सुधीर का गाल भन्ना गया . . . चाँटे की गूँज से कमरा अभी भी झन्ना रहा था . . .!

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई . . . . तुम्हारा दिमाग़ ख़राब तो नहीं हो गया . . . . ?"

"क्यों छोटी सी बात का बतंगड़ बनाते हो सुधीर . . . क्या करूँ, हाई सोसायटी के तौर-तरीक़े मुझे समझ ही नहीं आते . . . मिडल क्लास से हूँ न . . . और हाँ! अब ज़रा मैं भी तो देखूँ, कि तुम अपने घर में किस-किस को इसके बारे में बताते हो . . ."

प्रिया ने उसके तकिये और रज़ाई को उठाकर . . . बाहर सोफ़े पर पटक दिया!!

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