तक़दीर से माँगा था
कभी तेरा साथ।
चाहा था कह दूँ,
अपनी रेखाओं को तेरी।
आज सोचती हूँ ,
वो, एक ज़िद्द थी मेरी।
तक़दीर ने दे दिये 
तेरे संग के बेहतरीन लम्हे।
कहा जी लो,
उस पलों में ज़िन्दगी,
फिर गिला न करना 
मुझसे कभी,
तक़दीर ने तुझको 
इन हथेलियों पर लिखा नहीं...
अब तो तेरे ज़िक्र पर भी,
अपनी तक़दीर को ही आभार देती हूँ।
तू हर पल में है तक़दीर से मान लेती हूँ..॥

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें