टेक केयर

01-01-2020

टेक केयर

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 147, जनवरी प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

अस्सी वर्षीय नवेन्दु प्रकाश दिल्ली में सफ़दरजंग अस्पताल के वार्ड 13 में बिस्तर पर करवट बदलते हुए अपने बीते दिनों को याद कर रहे थे। उनका इकलौता बेटा कोलकाता में एक विदेशी कंपनी में सेवारत है। बहू बंगाली है और वह भी वहीं एक स्कूल में अध्यापिका है। वे पत्नी के साथ दिल्ली में विकासपुरी रहते हैं। कुछ वर्ष पहले वे बेटे-बहू के कहने पर सपत्नीक कोलकाता गए थे लेकिन तीन महीने बाद वे वापस आ गए थे। पत्नी को गठिया है। फलस्वरूप, वह चाहते हुए भी दौड़धूप करने में असमर्थ हैं। 

यकायक नवेन्दु जी जब ज़ोर से हँसने लगे तो उनके बाजू के बिस्तर पर लेटे रोगी ने उनसे पूछा, "बाबू जी, क्या हुआ? आप इतनी ज़ोर से क्यों हँस रहे हैं?"

सवाल सुनकर नवेन्दु जी को ख़्याल आया कि वे इस वक़्त अस्पताल में हैं। तुरंत अपनी उन्मुक्त हँसी को रोकते हुए वे बोले, "शंकर सुबह से मुझे नौ-दस लोग फोन कर चुके हैं। जिसे देखो वह इस अस्सी साल के बीमार से बस यही कहता है-'टेक केयर।' बेवकूफ़ों को यह भी मालूम नहीं कि एक बीमार बूढ़ा अपनी केयर कैसे कर सकता है?”

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