स्वदेश प्रेम

01-11-2020

स्वदेश प्रेम

मनीषा कुमारी आर्जवाम्बिका (अंक: 168, नवम्बर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

ना पूछो कितने ज़ुल्म सहे 
आज़ादी के उन मतवालों ने 
देश के लिए दे दी प्राणाहुति 
क्रांति की आग जलाने वालों ने 
 
दंभ किया चूर दुश्मनों का 
हुई ख़त्म गुलामी की रात 
वीरों का संघर्ष हुआ सफल 
तब आया स्वतंत्र प्रभात 
 
स्वदेश प्रेम में थे वो डूबे 
मातृभूमि थी माँ से बढ़कर 
वतन अब तुम्हारे हवाले 
कर गए सफ़र ये कहकर 

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