स्वाधीनता

01-09-2021

स्वाधीनता

निलेश जोशी 'विनायका' (अंक: 188, सितम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

स्वाधीनता मिली हमें पर, हुई शपथ कहाँ पूरी है
कहाँ हुए सपने सच अपने, आज़ादी मिली अधूरी है।
 
नतमस्तक शत शत प्रणाम, उन देशभक्त दीवानों को
हँसते-हँसते फाँसी को चूमा, कर न्योछावर प्राणों को।
 
नभ मंडल भी गुंजित था, भारत की जय से डोल उठा
आज़ादी का उदित सूर्य था, माटी का कण-कण बोल उठा।
 
जिनके रुधिरों से पग धोकर, आज़ादी भारत में आई
बेघर हैं वे अब तक भी, दुख की काली बदली छाई।
 
आज़ादी का जश्न नया था, सभी जश्न में डूबे थे
बंगाली सड़कों से पूछो, रक्त सने जो सूबे थे।
 
कैसे उल्लास मनाऊँ इसका? ये तो आधी-अधूरी है
पूछो उन बहनों से जिनकी, उजड़ी माँग सिंदूरी है।
 
खंडित आज़ादी हमको, बिल्कुल भी स्वीकार नहीं
अखंड भारत से कुछ भी कम, हमको है स्वीकार नहीं।
 
उस स्वर्णिम युग के लिए आज से, सीखें कुछ बलिदान करें
आज़ादी में खो ना जाएँ, कमर कसें अभियान करें।

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