सूरज से पी है मैंने आग
डॉ. सुनीता जाजोदियासूरज से पी है मैंने आग
पूरी करनी है रोज़ अपनों की आस
मिले न सहारा अपनों का चाहे हर बार
निकले न मगर कभी कोई आह
सूरज से पी है मैंने साहस की आग।
सूरज से ली है मैंने रोशनी
मारकर ज़मीर रोज़ है जीना
सितम अपनों के हज़ार हैं सहना
सीकर अधर जिन्हें चुपचाप है पीना
सूरज से जलाई है मैंने उम्मीद की आग।
सूरज से सीखा है मैंने नियम
बदलते रहते हैं मौसम हरदम
छोड़ मैदान पर नहीं है भागना
कर्म पथ पर डटे है रहना
सूरज से सुलगाई है मैंने जीने की आग।
सूरज से बीनी है मैंने किरणें
रिश्तों की तार-तार चादर पार जो चमकती
लहूलुहान हाथों से सीती जिसे बारंबार
काँटों भरी राहों में बढ़ने आगे लगातार
सूरज से वरदान में पाई है मैंने जीतने की आग।
1 टिप्पणियाँ
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सचमुच सूरज ऊर्जा का स्रोत है । प्रकृति मानव का सबसे बड़ा गुरू है । इसके हर एक अणु में एक संदेश छिपा है । केवल पहचानने की दृष्टि होनी चाहिए । जिसमें यह प्रतिभा है, वही सच्चे अर्थों में विवेकवान है । बहुत सुंदर । शुभकामनाएँ और बधाई
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