सूरज की क्या हस्ती है
अविनाश ब्यौहारपिता गए क्या
लगता है
उजड़ी हुई गिरस्ती है।
रिश्ते-नातों
का पुल
सहसा टूट गया।
अपने तो अपने
बेगाना-
छूट गया॥
गौरैया-सुआ के बिन
उजड़ी हुई सी
बस्ती है।
रात हुई और
निकले हुए
हैं तारे।
मन में गंध
वेद मंत्रों को
उच्चारे॥
रातों को
दिन में बदले
सूरज की क्या हस्ती है।
गर्मी की ऋतु
हाहाकार-
मचाती है।
नदियों-पोखर
का पानी
पी जाती है॥
हरे-हरे पत्ते पीले
जेठ मास की
पस्ती है।
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