सूर्य से भी पार पाना चाहता है

01-08-2019

सूर्य से भी पार पाना चाहता है

वीरेन्द्र खरे ’अकेला’

सूर्य से भी पार पाना चाहता है
इक दिया विस्तार पाना चाहता है
 
देखिए, इस फूल की ज़िद देखिए तो
पत्थरों से प्यार पाना चाहता है
 
किस क़दर है सुस्त सरकारी मुलाज़िम
रोज़ ही इतवार पाना चाहता है
 
अम्न की चाहत यहाँ है हर किसी को
हर कोई तलवार पाना चाहता है
 
इक सपन साकार हो जाये बहुत है
हर सपन साकार पाना चाहता है
 
फूलबाई कब, कहाँ, कैसे लुटी थी
ये ख़बर अख़बार पाना चाहता है
 
मैं तेरी ख़ातिर उपस्थित हो गया हूँ
और क्या उपहार पाना चाहता है
 
जिसका मिल पाना असम्भव है ‘अकेला’
दिल वही हर बार पाना चाहता है 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें