सुर्ख़ियाँ और संवेदना 

01-05-2020

सुर्ख़ियाँ और संवेदना 

डॉ. राजेन्द्र  वर्मा (अंक: 155, मई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

एक अफ़वाह से 
जब लोग 
भीड़ बन 
आ जाते हैं
स्टेशन पर  
तो बन जाते हैं
प्रश्न ?
और 
किसी के लिए
मसाला 
बटोरने का—  सुर्ख़ियाँ!! 

 
कोई नेता 
बाँट देता  
बटोरने के लिए सुर्ख़ियाँ   
सोसाइटी के एकत्र पैसे से 
ख़रीदी रोटियाँ! 


किन्तु  
कोई लगातार..........   
संलग्न हैं  
ऐसे ही काम में 
बाढ़ में 
घाम में
भोर में 
शाम में  
जलजलों-पुर-ज़ोर में    


वे  
सुर्ख़ियाँ नहीं बटोरते 
ऐसे योद्धा— 
इतिहास रचते हैं 
कभी 
सत्ता भी बदलते हैं 
बड़ी बात यह 
कि 
संवेदना बदलते हैं 
जीवन को अर्थ देते हैं
जीने का अर्थ बदलते हैं।  
और 
हो जाते हैं— इतिहास।  

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