सुरंगमा यादव हाइकु - 3

01-11-2019

सुरंगमा यादव हाइकु - 3

डॉ. सुरंगमा यादव

1.
नारी न होती
पीड़ाओं को आश्रय
मिलता कहाँ
2.
नारी जीवन
अश्रुजल में खिला
मृदु कमल
3.
दर्द या प्रेम 
जीवन में समाये
ढाई आखर
4.
फूटी कोंपल
कर रहा नर्तन
परिवर्तन!
5.
दिये की बाती
हवा को चूमकर
झूमती जाती
6.
कितने स्वप्न
आशा की चादर में
लिपटे पड़े
7.
बना मकान
मन खण्डहर-सा
रहा वीरान!
8.
निशा सो गयी
अंक में भरकर
साँझ शिशु को
9.
दौड़ा दिवस
थक गयी रजनी
सुबह गाती
10.
चाँद आया तो
उछल पड़ा कैसे!
देखो सागर
11.
नदी विकल
फिर भी न ठहरी
पल दो पल
12.
तम में दीप
काली चादर पर
तरल सोना
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सामाजिक आलेख
दोहे
कविता
कविता-मुक्तक
लघुकथा
सांस्कृतिक आलेख
शोध निबन्ध
कविता-माहिया
पुस्तक समीक्षा
कविता - हाइकु
कविता-ताँका
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में