सुपुत्र

01-04-2020

सुपुत्र

डॉ. मोहन सिंह यादव (अंक: 153, अप्रैल प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

एक पुत्र अपने वृद्ध पिता को रात्रिभोज के लिये एक अच्छे रेस्टोरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया। रेस्टोरेंट में बैठे दूसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नज़रों से देख रहे थे, लेकिन उसका पुत्र शांत था। 

खाने के बाद पुत्र बिना किसी शर्म के वृद्ध को वॉशरूम ले गया। उनके कपड़े साफ़ किये, चेहरा साफ़ किया, बालों में कंघी की, चश्मा पहनाया, और फिर बाहर लाया। सभी लोग ख़ामोशी से उन्हें ही देख रहे थे। 

फिर उसने बिल का भुगतान किया और वृद्ध के साथ बाहर जाने लगा। तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने उसे आवाज़ दी, और पूछा, "क्या तुम्हें नहीं लगता कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो?"

उसने जवाब दिया, "नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़कर नहीं जा रहा।"

वृद्ध ने कहा, "बेटे, तुम यहाँ प्रत्येक पुत्र के लिए एक सबक़ और प्रत्येक पिता के लिए एक उम्मीद छोड़कर जा रहे हो।" 

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